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________________ ५७४ ओपपातिकमा किच्चा वभलए कप्पे देवत्ताए उववण्णा। तहिं तेसिं गई। दस .. सागरोवमाड ठिई पण्णत्ता, परलोगस्स आराहगा, सेस त चेव ॥ सू० २७॥ मूलम्-बहुजणे ण भते । अण्णमण्णस्स एवमाइपरावृत्ता , 'समाहिपत्ता' समाधिप्राप्ता -उपगा तहल्या, 'कालमासे काल विचा' कालमासे काल कृया, 'वभलोए कप्पे देवताए उनपण्णा' ब्रह्मलोके क पे देवत्वेन पपन्ना , देशपिरतिफल स्वेपा परलोकाऽऽराधर वमेव । परिनाज कक्रियाफर ब्रह्मलोकगमनम् । 'तहि तेर्सि गई। ता तेपा गनि , 'दस सागरोषमाइ ठिई पण्णता' दासागरोपमागि स्थिति प्रजप्ता, 'परलोगस्स आराहगा' परलोफस्याऽऽगनका सती यर्थ , ‘सेस त चेव' शेप तदेव ॥ सू० २७॥ टीका-'बहुजणे ण भते !' इत्यादि । बहुजन -जनसमूह खल हे भदत! आलोचना की, पश्चात् वे उनसे परावृत्त हुए। फिर (समाहिपत्ता) समाधि प्राप्त कर (कालमासे काल फिच्चा भलोए कप्पे देवत्ताए उपवण्णा) काल-अवसर में काल करके ब्रह्मलोक कल्प मे देव का पर्याय से उपन्न हुए। (तहि तेसिं गई, दससागरोव माद ठिई पण्मत्ता, परलोगस्स आराहगा, सेस त चेत्र) रहीं पर उनकी गति प्ररूपित करने मे आई है। स्थिति इनकी १० सागर प्रमाग है। ये परलोक के नियम से आराधक कहे गये हैं। शेर पहिले को तरह समझना चाहिये ।। म २७ ॥ 'बहुजणे ण भते ' त्यादि। पुन गौतमस्त्रामा न भक्तिपूर्वक प्रभु से पूछा कि (भते) हे भगवन् ! (बहु भने समाधि प्रास उशने (कालमासे कार किन्चा बभलोए कापे देवत्ताए उपवण्णा) हाय-२५१५२ डा उशने प्रायोड ८५मा हेपनी थी Grपन्न थर (तहिं तेसिं गई, दससागरोनमाइ ठिई पण्णत्ता, परलोगस्म आरा हगा, सेस त चे) सातभनी गति प्र३पिन ४२वामा आवी छ भनी સ્થિતિ ૧૦ સાગર પ્રમાણ છે તેઓને નિશ્ચિતરૂપથી પરાકના આધારક કહેવામાં આવ્યા છે બાકીનુ અગાઉની પેઠે સમજી લેવું જોઈએ (સૂ ૨) 'चहजणे ण भते ' त्या पणी गौतम पाभीये मति:१४ प्रभुने ५ यु (भते!) लगवन् !
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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