________________
५००
औपपातिकसने जायकोऊहल्ले, उप्पण्णसड्ढे उप्पण्णससए उपण्णकोऊहल्ले, संजायसड्ढे सजायससए सजायकोऊहहे, समुप्पण्णसड्ढे समुमाय इति भार 1 'जायकोऊहल्ले' जातकुतूहल -जात उतूहलम=औ मुक्य यस्य स जातकुतूहल , मत्कृतप्रश्नस्य कीदृशमुत्तरं भगनाउ वक्ष्यनि त ओतुमौ मुक्यमानि यथे, 'उप्पण्णसड्ढे' उत्पनश्रद्ध -उपना-विशेषग जाता श्रद्धा यस्य स तथा, यद्वाश्रद्धाया स्वरूपस्य तिरोहितत्वे जातबद्ध , तस्या स्वरूपस्य प्रादुर्भाव तु उपनश्रद्ध -इति भाव । 'उप्पण्णससए' उपनसंगय , 'उप्पण्णफोऊल्ले' उपनतृहल , ' सजायसड्ढे गजातश्रद्ध , प्रर्पारिवाचक शिन्द , ततश्च सजाता-विशेषतरेण उपना श्रद्धा यस्य स मजातश्रद्ध , 'सजायससए' सजातसमय , 'सजायफोऊहल्ले' सजातकुतूहल , 'समुप्पण्णसड्ढे' समुत्पन्नश्रद्ध -समुत्पना सर्वथा सजाता श्रद्धा यस्य स तथा, प्रश्न का उत्तर न मालूम किस तरह का देगे ? इस बात को जानने को उत्कण्ठा उनके चित्त मे बढी, क्यों कि (उप्पण्णसडढे) भगवान के ऊपर ही उनके चित्त मे अतिशय श्रद्धा थी, अत उनसे ही निर्णय करने के लिये श्रद्वा उत्पन्न हुइ। (उप्पण्णससए उप्पण्णको ऊहल्ले सजायसड्ढे सजायससए सजायकोऊहल्ले समुप्पण्णसड्ढे समुप्पण्णससए समु प्पण्णकोऊहल्ले) उत्पन्न सय, उत्पन्न कौतुहल'-इत्यादि पदां द्वारा वाच्यार्य मे, अवग्रह, इहा, अपाय, और धारणा ज्ञान की तरह उत्तरोत्तररूप से विशेषता द्योतन करने के लिए सूत्रकार
ने 'जात, उत्पन्न, सजात, समुत्पन्न' इन पदों का प्रयोग किया है। भगवान् गौतम __ को जो चित्त मे तत्त्व के निर्णय करने की इच्छा जागृत हुई वह पहिले सामा यरूप मे ही
हुइ, कारण कि उहे गय जो उपन्न हुआ था वह भी सामायरूप से ही हुआ था, इसी
કેવી રીતે આપશે ? એ વાતને જાણવાની ઉત્ક છે. તેમના ચિત્તમાં વધી, કેમકે (उप्पण्णसड्ढे) भगवानना ७५२०४ तेमना थित्तमा अतिशय श्रद्धा ती, हुवे तमनी ४ पासथा निर्णय ४२१! माटे श्रद्धा त्पन्न 25 (उप्पण्णससए उप्प पणकोहल्ले सजायसड्ढे सजायससए सजायकोउहल्ले समुप्पण्णसढे समुप्ण्ण ससए समुप्पण्णकोहल्ले) Geपन्नस शय उत्पनौतुडत' Vत्यादि यह द्वारा વાચ્યાર્થમા, અવગ્રહ, ઈહા, અવાય અને ધારણુ જ્ઞાનની પેઠે ઉત્તરોત્તરરૂપથી विशेषतानाश सापवाभाटे सूत्रधारे 'जात उत्पन्न सजात समुत्पन्न' से पहाना એશ કર્યો છે ભગવાન ગૌતમને જે ચિત્તમા તત્વને નિર્ણય કરવાની ઈચ્છા ગત થઈ તે પહેલા સામાન્યરૂપમાં જ થઈ હતી કારણ તેમને જે સ શય