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________________ - पोयूपयपिणी-टीका सू • गोतमस्वामिनी भगयत्मीपे गमनम प्पण्णसंसए समुप्पण्णकोऊहल्ले उठाए उड उहित्ता जेणेव समणे भगव महावीरे तेणेव उवागच्छड उवागच्छिना समणं भगव महावीरं निस्खुत्तो आयाहिणपयाहिण करेड करिता 'समुप्पागसमए ' सम्पन्न-71, 'समुप्पण्णकोउल्टे' सनुप नकुतूहल , अद्रात्य गल्ला न्यायाता । अव श्रद्धाटी कार्यकारणभाव । प्रभवान्छापा अदा नाता, तम्या कारण-समय उत्तृहल चेनि । 'उठाए उटेड' यया उथानावत्या म्यामनात् उत्तिष्ठति, चाय, 'जेणेच समणे मगर महावीरे' यौन श्रमणो भगवान महावागे पिराजत इति शप , 'तेणेव उवागन्छ' तत्रयोपाग छनि, 'उवागन्छित्ता' यागय, 'समण भगर महागीर' श्रमणम्य भगवतो महागारम्य, 'तिस्पत्तो जायाहिणपयाघिण रेइ ' विश्व आदक्षिणप्रदक्षिण कगेनि, 'सरिता' कृपा 'पंढर णमसर' तरह अपने प्रश्न के उत्तर को सुनने के गिये जो उनक चित्त म उकण्ठा नागृत हुइ वह मा सामान्यरूप से ही। फिर बाद म 'उत्पन्नमडढे' आदि पढों द्वाग जो मूत्रमार न श्रद्वा को उपन्न आनिरूप म प्रकट किया हे उममे श्रद्धा आदि म उत्तरोत्तर विशेषता जाननी चाहिये । दम प्रकार के व गौतमप्रभु (उद्वारा उठेद) च्यानगक्ति द्वारा अपन स्थान से उठ और (द्वित्ता जेणेव ममणे भगव महावीरे तेणेर उवागन्छड) उठ जहा प्रभु श्रमण भगान् महागार गिजमान ये वहाँ पढेंचे, (उपागन्छित्ता ममण भगव महावीर विक्खुत्तो आयाहिणपयादिण रेड) पचने हा उन्होंने अमण भगवान् महानार प्रभु को तान नार आदक्षिण-प्रदविण किया, (करित्ता पर णममद) फिर चाट म पन्ना एव ઉત્પન્ન થયો તે પણ સામાન્યરૂપથી જ થયે હતે આવીજ રીતે પિતાના પ્રશ્નને ઉત્તર ભાભળવાને માટે તેમના ચિત્તમા જે જાગ્રત થઈ તે પS सामान्य३५नीउनी ५५ त्यार ५०ी (उ पण्णमटे) माहिya and સૂત્રકારે શ્રદ્ધાને ઉત્પન્ન આદિ રૂપથી પ્રકટ કરી છે તેવી શ્રદ્ધા આદિમાં उत्तरोत्तर विशेषता ती ये 21 ते गौतम प्रभु (ट्टा उडे) 'त्यानति द्वारा पोताना न्यानयी .या, मने (उद्वित्ता जेणेन समणे भगर महावीरे तेणेव जागाछई) डाने ज्या प्रभु श्रभर भगवान महापी गि भान त्या पहाच्या (उमागच्छित्ता समण भगन महावीर तिमुत्तो आया हिणपयाहिण रेइ) पहायता तभी श्रमण लगवान महावीर प्रभुने नधु
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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