________________
पीयूषवर्षिणी-टीका ख ६१ सुभद्रादीना स्वस्थाने गमनम्
४९३
वदित्ता जामेव दिस पाउ भूयाओ तामेव दिस पडिगयाओ ' एवम् उदित्वा यस्या एव दिश प्रादुर्भूता, तामेव दिश प्रतिगता ॥ सू० ६१ ॥
इति श्री - विश्वविख्यात - जगवल्लभ - प्रसिद्धवाचक - पञ्चदशभाषा कठितललितकला पालापकप्रनिशुद्धगद्यपद्यनैक निर्मापक - वादिमानमर्दक- श्री शाह उत्रपति - कोल्हापुरराज- प्रदत्त - जैनशास्त्राचार्य - पदभूपित - कोल्हापुरराजगुरु - नालनाचारि - जैनाचार्य - जैन धर्म दिवाकर - पूज्यश्री घासीलाल्त्रतिविरचितायाम् औपपातिकसूत्रस्य पीयूषव पिण्याख्याया व्याख्याया समवरणनामक पूर्वार्द्ध सम्पूर्णम् ।
तामेव दिस पडिगयाओ) इस प्रकार भक्तिभाव से प्रभु की स्तुति करके वे सब रानियाँ जहा से आई थीं वहीं वापिस चली गयीं || सू० ६१ ॥
॥ इति औपपातिक सूत्रका समवसरणनामक पूर्वार्द्ध सपूर्ण ॥
जामेव दिस पाउ भूयाओ तामेव दिस परिगयाओ) मा अारे लतिलावथी પ્રભુની સ્તુતિરૂપે નિવેદન કરીને તે બધી રાણીઓ જ્યાથી આવી હતી ત્યા પાછી ચાલી ગઈ (સ ૬૧)
ઈતિ ઔપપાતિક સૂત્રનુ સમવસરણુ નામક પૂર્વાદ્ધ સ પૂ