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________________ पोपापणी-टीका सू ४९ भगवदर्शनार्थ कूणिकस्य गमनम् उत्त बहु-किकर-कम्मकर-पुरिस-पायन्त-परिक्खित्त पुरओ अहाणुपुव्वीए सपट्टियं । तयाणतर च ण वहवे लट्टिग्गाहा कुंतग्गाहा चावग्गाहा चामरग्गाहा पासग्गाहा पोत्थयग्गाहा फलगग्गा हा पीढग्गाहा वीणग्गाहा कूबग्गाहा हडप्पयग्गाहा पुरओ अहाणुपुत्रीए संपपाठम् श्रेष्ठ मणि-रत्नखचित - पादस्थापन पाठ - सहितम्, 'सपाजया - जोय- समाउत्त' स्वपादुकायोग-समायुक्तम्-स्वनादुकयोयों योग, तेन समायुक्तम्, 'बहु- किंकर - कम्म कर-पुरिस-पायत्त परिक्खित्त' बहु किद्दर-कर्मकर-पुरुष पादात परिक्षिप्तम् - बहुभि = अनेकै किङ्गरै =स्वामिन पृष्ट्वा कार्य करै, कर्मकरैत्यै पुरुषै = साधारणजनै, पादातेन=पदातिसमूहेन परिक्षिप्तम्=उत्थापितम्, पुरतो यथानुपूर्व्या सम्प्रस्थितम् । 'तयाणतर च ण' तदनन्तरश्च ग्खलु 'वहवे लट्ठिग्गाहा' बहवो यष्टिप्राहिण, ' कुतग्गाहा ' कुन्तप्राहिण =भल्लधारका 'चात्रग्गाहा' चापप्राहिण = धनुर्धारिण, 'चामरग्गाहा' चामरग्राहिण, 'पासग्गाहा' पागयाहिण - उद्धतगजाश्वादिधनसाधन पागस्तस्य धारका | 'पोत्ययग्गाहा' पुस्तकग्राहिण, 'फल्गग्गाहा' फल्कग्राहिण - फलक = 'ढाल' इतिरयातस्तस्य धारका 'पीढरगाहा' पीठग्राहिण पीठानि=आसनविशेषास्तेषा धारका इत्यर्थ । 'वीणग्गाहा' चीणाग्राहिण -वीणानाद्यरत्नों के बने हुए पादपीठ को लेकर आगे २ चल्ने लगे । इसके बाद (बहवे लडिग्गाहा) अनेक लाठा नगरी चलने लगे। (कुतग्गाहा) अनेक भल्लधारी (चावग्गाहा) धनुर्धारा (चामरगाहा) चामरधारी ( पासग्गाहा) उद्धत हाथी और घोडों को जिसके द्वारा वा मे किया जाये ऐसे पात्र को धारण करने वाले, (पोत्थयग्गाहा) पुस्तकधारी, (फलगग्गाहा) दाल को धारण करना (पीढग्गाहा) आसनविशेष के धारी (वीणग्गाहा) वीणाधारी (कुत 1 , ४०५ આગળ આગળ ચાલ્યા, તથા ઘણા નેકર-ચાકર અને સૈનિક લેા શ્રેષ્ઠ સિંહાસનને તથા પાદુકાસહિત ઉત્તમ મણિરત્નાની બનેલી પાદપીઠને લઇને आागण भागण थास्या त्यार पछी ( बहवे लट्ठिग्गाहा) भने साठीघारी ચાલવા લાગ્યા ( कुतग्गाहा ) मने लाताधारी, (चावग्गाहा ) धनुर्धारी, (चामरग्गाहा) न्याभरधारी, (पासग्गाहा) उद्धत हाथी भने घोडाने नेना द्वारा पशभा स शजय सेवा पाशने धारषु खावाजा, ( पोत्ययग्गाहा) युस्तन्धारी, (फलगग्गाहा) ढालने धार ४२वावाजा, (पीढग्गाहा) आमन विशेषना धार वा वाजा, (वीणग्गाहा) पीलधारी, (कुतुवग्गाहा) तुप अर्थात् याभडाना तेस पात्रने
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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