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भोपातिकतो कुहिमयले रमणिने पहाणमडवसि णाणा-मणि-यणभक्तिचित्तमि हाणपीढसि सुहणिसण्णे सुद्धोदएहिं गंधोदएहि पुष्फो. दएहि सुहोदएहि पुणो पुणो कल्लाणग-पवर-मजण-विहीए मजिए, तत्थ कोउयसपहि बहुविहेहि कल्लाणग-पवर-मज्जणानै गचित कुश्मितल=भृभागो यस्य स तथा तस्मिन् , 'रमणिज्जे ' रमणीये मनोहर, 'हाणमडवसि' स्नानमण्डप, 'गाणा-मणि-रयण-भत्ति-चित्तसि' नाना-मणि-रनभक्ति-चित्रे=विविध-मगि-रत्न-रचनानिचित्रे, 'पहागपीढसि' स्नानपाठ 'मुहणिसण्णे' मुसनिषण्ण =मुसाऽऽसान , 'सुद्धोदएहि' शुद्धोदकै =निरवद्यजलै 'गघोदएहि' गधोदकै =श्रीग्वण्डानिमिश्रिते जले , 'पुप्फोदएहि' पुप्पोदके =पुप्पमिश्रितजले . 'मुओदरहि' मुसोदकै =नातिगातोगै 'पुणोपुगो'पुन पुन 'कल्लाणग पवर-मज्जण विहीए' कल्याणक प्रार-मजन-विधिना कन्यागकारक-श्रेष्ठम्नान-रिधानन, 'मजिए' मजित -स्लपित , 'तत्थ' तर=स्नानानतर, 'कोउयसएहि' कौतुगतै , कौतुकाना=दृष्टिदोषनिवारणार्थ अगन वाले (रमणिने) मनोहर (हाणमडवसि) स्नानमडप मे रक्खे हुए (णाणा-मणिरयण-भत्ति-चित्तसि ) अनक मणि ओर रत्ना की रचना से युक्त (हाणपीठसि) ऐसे स्नान करने क पाठ (वाजोट) पर (मुहणिसण्णे) सुस से पैंठे, और वहा बैठ कर (सुद्धो दएहि) शुद्ध–निर्मल जलसे, (गगोदरहि) गधोदक-चदनमिश्रित जल से (पुप्फोदएहि.) पुष्पमिश्रितजल से, (सुहोदरहि) किचिदृष्ण जल से (पुणो पुणो) बार बार । (कल्लाणग पवर-मज्जण-विहीए मन्निए) उहान कल्याणकारक श्रेष्ठ स्नानविधि-से स्नाना किया। (तत्थ कोउयसएहि बहुविहेहिं) उस अबसर में विविध प्रकार के अनेक कौतुका से दृष्टि मणि रयण कुट्टिम तले) तथा विविध भाशुमाथी तिमाशापामा, (रमणिज्जे) भनी २ (व्हाणमटरसि) स्नानम उपमा रामेसा (णाणा-मणि-रयण-भक्तिचित्तसि) सनेमति तथा रत्नानी मनापरथी युक्त (व्हाणपीढसि) मेवा स्नान वानी पीउ (माल) G५२ (सुहणिसण्णे) सुमेथी महा मन समीर (सुद्धोदहिं) शुद्ध-निभ 1 , (गधोदएहिं ) घो:- - मिश्रित सडे, (पुग्फो-एहिं) धुप्पमिश्रित are पडे, (सुहोदएहिं) NA Eenaraa3, (पुणो पुणो) पार पा२ (कल्लाणग-पवर-मजण-विहीए मजिए) माणे इत्याचा श्रेष्ठ मानविधियी जान थु (तत्य कोउयसपहि