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पीयूषषिणो-टीका स ४८ कृणिकम्य स्नानविधानम्
३९३ सवाहणाए संवाहिए समाणे अवगय-खेय-परिस्समे अट्टणसालाओ पडिणिक्खमड, पडिणिक्खमित्ता जेणेव मजणघरे तेणेव उवागच्छड, उवागच्छित्ता मजणघर अणुपविसह, अणुपविसित्ता समुत्त-जाला-उला-भिरामे विचित्तमणि-रयणमयाह्नया-मर्दनेन 'सवाहिए समाणे माहितो मरिन सन् , 'अवगय-खेय-परिस्समे' अपगत-खेद-परिश्रम =समपनीनवेत् परिश्रम , 'अट्टणसागओ' अनगालात =व्यायामशालात 'पडिनिस्खमा' प्रतिनिझामति, 'पडिणिस्वमित्ता' प्रतिनिक्रम्य, 'जेणेव मन्नणपर तेणेव उवागन्छ।' यत्रैच मजनगृह तत्रैवोपागच्छति, 'उवागच्छित्ता' उपाग य, 'मजणार अणुपविसइ' मन्ननगृह्मनुप्रविशति, 'अणुपविसित्ता' अनुप्रविश्य 'समुत्त-जाला-उला-भिरामे' समुक्त--जाला-गुला-ऽभिगमे-समुक्तजालेन-मुक्तामहितेन जान गवाक्षेण आकुलो व्याप्त , अतण्य अभिराम =सुन्दरस्तस्मिन् , 'विचित्त-मणि-रयण-कुट्टिम-तले' विचित्र-मगि-रन-कुहिम-तले-विचित्रमगिरराजा की खूब मालिग का । जब राजा की अच्छी तरह से मालिश हो चुकी तर वे (अवगय-खेय-परिस्समे) परिश्रम एव खेद से रहित हो (अट्टणमालाओ) उस व्यायामशाला से (पडिणिक्खमइ) बाहर निकले, (पडिणिक्खमित्ता) निकल कर (जेणेव मजणघरे तेणेव उवागच्छइ ) जहा स्नान घर था वहाँ पहुँचे । (उवागच्छित्ता मजगघर अणुपविसइ) पहुँच कर स्नानघर मे प्रविष्ट हुए । ( अणुपविसित्ता) वहाँ प्रविष्ट होकर (समुत्त-जाला-उला-भिरामे) मोतियों की लडियों वाले गोखलों से युक्त होने के कारण अति सुदर (विचित्त-मणिरयण-कुटिम-तले) तथा विविध मणियों से जटित
न४३पी (चउव्यिहाए) यार प्रहारनी (सपाहणाए) भासिशथी (सवाहिए समाणे) રાજાની ખૂબ માલિશ કરી જ્યારે રાજાની સારી રીતે માલિશ થઈ રહી त्यारे तसा (अवगय खेय परिस्समे) परिश्रम तभन मेहथी भुत य (अट्टण सालाओ) ते व्यायामशालामाथी (पडिणिक्खमइ) मार नीया (पडिणिक्ख मित्ता) नीजीन (जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ) या स्नानघर हेतु त्या ५-या (उमागच्छित्ता मज्जणघर अणुपपिसइ) पायाने स्नानघरमा मिस थया. (अणुपविसित्ता) तमा थमने (समुत्त जाला उला भिरामे) भातियानी हिमपाणा सामाथी युक्त डीवाना २0 मतिसु, (विचित्त