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________________ पोपपिणो-टीका र ४४ यानशालियस्य पलव्यापूनाऽऽदेशसपादनम ३७९ आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेड, पडिसुणिता जेणेव जाणसाला तेणेव उवागच्छड, उवागच्छित्ता जाणाड पञ्चुवेक्खेड, पञ्चुवेरिखता जाणाड सपमज्जेड,सपमजित्ता जाणाड सवटेड,सवद्वित्ता जाणाडणीणेड,णीणिता जाणाण से पवीणेह, पवीणिताजाणाई प्रतिशगोति स्वाकगेति, प्रतिश्रुय-आजावचन पात्य यौव यानशाला तपोपागच्छति, उपागय 'जाणाइ पच्चुवेरखेद' यानानि प्रयुपेक्षते सम्यक प-यति, प्रत्युपेक्ष्य दृष्ट्या 'जाणाद सपमज्जेड' यानानि सन्प्रमार्जयति-विगतरजासि पुरते, सम्प्रमार्य, 'जाणार्ड सव' यानानि चर्तयनि-स्मिन म्याने स्थापयति, 'संवट्टित्ता' पय॑ 'जाणाई णीणे३' यानानि नयति-शालातो वहिपति, नावा 'जाणाण' यानाना 'दसे' दूप्याणि आच्छादनपत्राणि 'पवीणेड' प्रविनयति अपसारयति, प्रविनाय-अपसार्य, आनाको सुनकर (आणाए विणएण वयण) उस आनावचन को विनयपूर्वक (पडिसुणे.) स्वाफार किया, (पडिसुणित्ता) स्वाकार करके फिर वह (जेणेव जाणसाला) जहा यानगाला था (तेणेव उवागच्छद) वहाँ पहुँचा, (उवागच्छित्ता) पहुँचकर (जागाइ पन्चुवेक्खेड) उसन वहा पहिले रथ आदि यानों को अच्छी तरह से देसा । (पन्चुवेक्खित्ता) देयकर (जाणाट सपमन्जेट) उसन उरे अच्छा तरह झाड-झुड कर साफ किया । (सपमनित्ता जाणाद सब इ) साफ करने के बाद उसने फिर जितने चाहिये थे उतने यान एक जगह एकत्रित किये । (साहित्ता) टकह करने के बाद (जाणार णीणेट) वहा से उसने उन सब को बाहिर निकाला। (णीणित्ता) वाहिर पानी मा सामान (आणाए विणएण वयण) ते माजावयनना विनयपूर्व (पटिसणे) वीर यो (पडिसुणित्ता) भ्वार गने ५४ी ते (जेणेन जाणसाला) या याना ती (तेणे जागन्छइ) त्या पहान्यो (जाग कित्ता) पहायाने ( जाणाइ पन्चवेस्या) तेरी त्या पडसा २५ आदि यानाने भाग गते नेया ( पन्चुवेरिखता) लेधन (जाणाइ सपमजेइ) ते ते माग गते पती-6731 मा उर्या ( सपमज्जिता जाणाइ सबट्टेड) मा ४३१ લીધા પછી તેણે જેટલા જોઈતા હતા તેટલા યાન (વાહન) એક જગાએ ० या (सवट्टिता) -४! सीधा पछी (जाणाइ णोणेड) त्याथी तेरे से अचाने मा२ च्या (णीणित्ता) पा२ बाढीने (जाणाण दूसे
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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