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________________ २७८ - ओपपातिकमरे जत्ताभिमुहाई जुत्ताइ जाणाई उववेहि, उवदृवित्ता एयमणत्तियं पञ्चप्पिणाहि ॥ सू० ४३॥ मूलम्-तए णं से जाणसालिए बलवाउयस्स एयम सालाए' बतायामुपस्थानशालायाम्, 'पाडिययपाडियाड' प्रयेक प्रयेकम्-प्रत्येकाऽर्थम् , 'जत्ताभिमुहाद' यात्राभिमुसानि-भगवदर्शनार्थगमनानुकूल्गनि 'जुत्ताई' युक्तानि 'जाणाई' यानानि 'उपद्ववेहि' उपस्थापय-सन्नीकृ य समानय, 'उबवित्ता' उपस्याप्य 'एयमाणत्तिय पञ्चप्पिणाहि' एतामाजमिका प्रयर्पय-मटीयामाजा पश्चात् समपय-सर्व सम्पादितम् इति नूहि ॥ सु० ४३ ॥ टीका-'तण से' इत्यादि। तत यल स 'जाणसालिए वलबाउयस्स एयमह' यानगालिको वलव्यात स्यैतमर्थम्-यानसनामग्णाऽऽनयनरूप निदेश श्रुत्वा. आनाया विनयेन पचन 'पडिमुणेड' के बैठने योग्य अलग २ रूप मे (जत्ताभिमुहाइ) याना के लायक-भगवान के दर्शन करने के लिये जिसमे घेठकर जाया जाता है ऐसे (जुत्ताइ) एव अच्छे २ बेलों से युक्त (जागाड) रथादिक वाहनों को (उवद्ववे हि) उपस्थित करो, (उवट्ठवित्ता) उपस्थित करके (एयमाणत्तिय पञ्चप्पिणेहि) इस मेरो आज्ञा को यथावत् पालन करने की खबर पीछे मुझे बहुत जादा भेजो ।। सू० ४३ ॥ 'तए ण से जाणसालिए' इत्यादि । (तए ण) सेनापति के आदेश देने के बाद (से जाणसालिए) उस यानगाला के अधिकारी ने (बलवाउयस्म) सेनापति के (एयमह) यान को सनित करके लानेकी पाडियस्काइ) मे शेड राष्णीने मेमा योज्य ससस सस ३५भा (जत्ता भिमुहाइ) यात्राने साय: सापानना शन ४२। माटेरेमा मेसीने पाय सेवा, (जुत्ताइ) तम सासारी मनोथी युद्धत (जाणाइ) २थ साडि पाडनाने (उपवेहि) ४२ ३ (उबवित्ता) डा२ रीने (ग्यमाणत्तिय पच्चप्पिणेहि) A1 भारी माज्ञानु पासन ४२पानी ५२ पछी भने । arcी भzat (सू० ४३) " तर ण से जाणमालिए." त्यादि TRY) नापतिना माहेश वाधा पछी (से जाणसालिए) यानादान शशिर (पल्याउयास) नातिनी (एयमट्ठ) यानने तैयार शन साप
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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