________________
-
३७२
ओषपातिकसूत्रे ।' मृलम्-तए ण से हथिवाउए वलवाउयस्त एयमट्ट सोचा आणाए विणण्णं वयण पडिसुणेड, पडिसुणित्ता छेयायरिय-उपएस-मड-कप्पणा-विकप्पेहि सुणिउणेहि उज्जल-णेवत्थ
टीश-लए ण से याति। 'तपण' तत =अलव्यापृताजान तर खल ' से हस्थिपाउए' म हस्तिव्यापूत --महामान , 'लपाउयस्स एयमह सोचा' बलन्यापूतस्य पतमर्थ सुसज्जितगजाऽऽनयनातिरूप वचन श्रुवा, 'आणाए विणएण वयण पडिमुणेड' आजाया विनयेन वचन प्रतिशगोति-विनयपूर्वमाजावचन-सेनापति निदेशमगीकरोति, 'पडिसुणित्ता' प्रतिश्रु य ' छेयायरिय-उवएस-मड-कप्पणाविकप्पेहि काऽऽचार्यो-पदेश-मति-कल्पना-विकल्पै छेकाचार्यस्य-पटुतरशिल्पशिक्षक श्योपदेशाज्जाता या मति -बुद्वि तया या कल्पना-मजना-हस्तिना शृङ्गारसमारचना, ता विविधप्रकारेण कम्पयति ये ते तथा ते सुशिक्षकोपदेशल पवुद्धया विशिष्ट शिल्पकल्पनाकारकैरित्यर्थ , अतण्ा 'मुणिउणेहिं ' सुनिपुणे -गजादिशृङ्गाररचनाकुगले 'उज्जलचतुरगिणा सेना को भा सुसजित करो । (सण्णाहेत्ता) सन्नद्र करके (एयमाणत्तिय पञ्चप्पिणाहि) बाद म टस मेरा आना के यथावत् पालन करने की में पीछे ग्वनर दो ॥सू ४१॥
तए ण से हत्यिाउए' इत्यादि ।
(नए ण) सेनापति के आदेश देने के बाद (से हथिवाउए) वह हाथियों का अधिकारी (बलवाज्यम्स) सेनापति के (एयम) इस बातको (सोचा) सुनकर (आगाए वयण) आजा के वचन को (विणएण) विनयपूर्वक (पडिमुणेइ) स्वीकार किया। (पङिसुणित्ता) स्वीकार कर उसने (छेयायरिय-उवएस मइ कप्पणा विकप्पेहि) छेकाचार्यविशिष्टनिपुणशिल्पशिक्षा के उपदेश से उद्भुत वुद्धि द्वारा विविध प्रकारका रचना से हाथिपन्चप्पिणाहि) ५७ मा भारी माज्ञाने यथावत् पाजी तनी भने पाछी भार माप (४१)
'तए ण से हथिवाउए' त्यादि
(तए ण) सेनापतिले माहेरा वाधा पछी (से हस्थिवाजप) ते था साना अधिकारी (बल्वाउयस्स) मेनातिनी (ण्यमट्ट) से पातन (सोचा) सामजीन (आणाए वयण) मानना क्यनने (विणएण) विनयपूप ४ (पडिमुणेइ) स्वीर या. (पडिसणित्ता) स्वीडा२ ४शन तय (छेयायरिय-उवएस-मइ-कापणा विक ઇ કાચાર્ય વિશિષ્ટ નિપુણ શિલ્પ શિક્ષકના ઉપદેશથી ઉદ્દભવેલી બુદ્ધિ