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________________ ३५० औपपातिकसूत्रे ! पुण्णभद्दे चेडए अहापरुिव उग्गह उग्गिहित्ता संजमेण तवसा अप्पा भावेमाणे विहर। त महत्फलं खलु भो देवाणुप्पिया। तहारूत्राण अरहताण णामगोयस्स पि सवणयाए, किमग प्राप्त इति भाव, 'इह समोसढे 'ह समनसृत, साधुकल्प्यामहे समनसून इति भान, तदेवाह - ' इहेव चपाए णयरीए' इत्यादि इन चपाया नगया, ' बहि' बहि नहि वे प्रदेशे, 'पुण्णभद्दे चेडए ' पूर्णभद्रे चेये - पूर्णभद्रनामक उद्याने, 'अहापडिरूत्र उग्गह उग्गिण्हित्ता' यथाप्रतिरूपमनप्रह्मवगृह्य-पयमानुकूलमावासस्थान याचिया, 'सजमेण तवसा अप्पा भावेमाणे विहरः ' पयमेन तपमाssमान भावयन् विहरति । 1 'त महष्फल खलु भो ठेवाणुप्पिया !' तन्महत्फर गल भो देवानुप्रिया 'तहारूत्राण अरहताणं भगवताण णामगोत्तस्सपि सत्रणयाए' तथारूपा गार्हता भग बता नामगोनयोरपि श्रागतया - तादृगाना सवातिशयवता भगवता तीर्थ राणा नामगोत्रश्रन णेनापि महत्फल भवति, 'किमग पुण अभिगमण-वंदण - णमसण-पडिपुच्छण-पज्जु वाराणयाए ' किमङ्ग पुनरभिगमन- - चन्दन - नमस्थन - प्रतिप्रच्छन- पर्युपासनया हे अङ्ग ! हे हुए है, और (इहेव चपाए णयरीए वहिं पुष्णभद्दे चेइए अहापडिरूत्र उग्गह उरिंग हित्ता सजमेण तवसा अप्पा भावेमाणे विहरइ ) इस चम्पा नगरी के नाहर पूर्णभद्र उद्यान मे ठहरने के लिये वनपाल की आना लेकर परम एव तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचर रहे है । इसलिये ( भो देवाणुप्पिया) ह देवानुप्रिय ' जब ( तहारूवाण अरहताण भगवताण णामगोयस्स वि सवणयाए ) तथारूप सर्वातिर्य मपन्न भगवान् तीर्थकरों के नाम एन गोत्र के श्रवण से भा ( महाफल ) जीनों को महाफल प्राप्त होता है, तन ( किमग पुण अभिगमग-वदण - णमसण - पडिपुच्छण-पज्जु 1 सभवसृत थया छे तथा तेथे (इहेन चपाणयरीए बहि पुण्णभद्दे चेइए अहापडि रूप उग्गह उग्मिण्डित्ता सजमेण तनमा अप्पाण भानेमाणे विहरइ) मान्य पानगरीनी બહાર પૂર્ણભદ્ર ઉદ્યાનમા ઉતરવા માટે વનપાલની આજ્ઞા લઇને નયમ તેમજ तथ्थी घोताना आत्माने लावित डरता वियरे या सारे (भो देवाणुपिया) हे हेवानुप्रिय ! न्यारे (तहारूयाण अरहताण भगवताण णामगोयस्मवि सवणयाए ) તથારૂપ સર્વાતિશયસ પન્ન ભગવાન તીર્થંકરાના નામ તેમજ ગામના શ્રવણુથી थए, (महाफल) भवाने महाइस आप्त थाय छे, त्यारे (किंमग पुण अभिगमण वदण- मसण-पडिपुच्छण-पज्जुवा सणयाए) हे न्य-आयुष्मन् ! तेभना सभीय
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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