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औपपातिकमरे णेवच्छ-गहिय-वेसा पमुइय-कंदप्प-कलह केली-कोलाहल-प्पिया हास-बोल-बहुला अणेग-मणि-रयण-विविह-णिज्जुत्त-विचित्त-चिधगया सुरूवा महिदिया जाव पज्जुवासंति ।। सू० ३५॥ =कृत वेष -शरीरशोभाऽऽधायकप्रसाधन यैस्ते तथा, तत्र नेपथ्य-'पागाक-इतिभाषाप्रसिद्धम्, 'पमुइय कदप्प-कलह-केली कोलाहल प्पिया' प्रमुदित-कन्दर्प-कलह केलि कोलाहल-प्रिया प्रमुदिताना य कन्दर्पप्रधान कल्ह केली क्रीडा, तनय कोलाहल -कलकल प्रिया येषा ते तथा, कामकलहक्रीडाकोलाहलपरायणा इत्यर्य । 'हास-वोल बहुला' हास बनिबहुला 'अणेग मणि रयण विविह णिज्जुत्त विचित्त चिंध-गया' अनेक-मणि-रत्न विविध नियुक्तविचित्र चिनगता अनेकानि यानि मणिरुनानि तानि विविधनियुक्तानि-विविधप्रकारेण यथास्था नस्थितानि, तान्येव विचित्रचिह्नानि तानि गता प्राप्ता । 'मुरूवा' सुरूपा -मुन्दराऽऽकारा । महिड्डिया' महदिका -महासम्पत्तियुक्ता । 'जाव पज्जुवासति' यावपर्युपासते-आद क्षिणप्रदक्षिण व दनादीनि पूर्ववत् कृत्वा भगवत श्रीमहावीरस्याभिमुखे स्थिता कृतप्राञ्जलिपुटा भगवत श्रीमहावीर सेवन्ते-इति ॥ सू० ३५ ॥ की ये पोशाक धारण किये रहते है। (पमुइय-कदप्प-कलह-केली-कोलाहल प्पिया) प्रमुदितों का जो क दर्पप्रधान कलह एव क्रीडा होती है इससे जन्य जो कोलाहल होता हे वह इहे अधिक प्रिय रहा करता है। (हास-बोल-बहला) ये हँसी-मजाक करने मे बडे चतुर होते है । (अणेग-मणि-रयण-विविह-णिज्जुत्त-विचित्त-चिंध-गया) अनेक मगिरत्न, जो कि विविध प्रकार से यथास्थान पर निवेशित रहा करते हैं वे ही जिनके विचित्र चिह्न हे ऐसे, (सुरुवा) सुन्दर आकार विशिष्ट, (महिड्ढिया) एव महाऋद्धियुक्त वे व्यन्तर देव (जाव पज्जुवासति) पूर्ववर्णित असुरकुमारों की तरह दोनों हाथ जोडकर वदना एव नमस्कार करके प्रभु महावीर की सेवा में ग्लग्न हुए ॥ सू० ३५॥ જે કન્દપપ્રધાન કલહ એવ ક્રીડા થાય છે તેમાથી જે કોલાહલ ઉત્પન્ન थाय छ त मन मधिल प्रिय साणे छ (हास बोल बहुला) बासी-भOME उपाभा २म यतुर होय छे (अणेग मणि रयण विविह णिज्जुत्त विचित्त चिंध गया) सने भनि २ विविध प्रा३ यथास्थान निवेशित २९
त गाना विचित्र थिन छ । (सुरूवा) सुह२ मा २ युत (महिडिढया) मे भड-द्धियुत व्यन्तरवि (जाव पज्जुवासति) पूर्व ४क्षा અસુરકુમારની પેઠે બન્ને હાથ જોડી વદના તેમજ નમસ્કાર કરીને પ્રભુ મહાવીરની સેવામાં લગ્ન થયા (સૂ ૩૫)