________________
३३६
औपपातिकको
वल-चित्त-कीलण-दवप्पिया गभीर-हसिय-भणिय-पीयगीय-णच. ण-रई वणमाला-मेल-मउड-कुडल-सच्छद-विउब्बियाहरण-चारुशतवर्तिन , ते कीदृशा । अगट-'चचल चार-चित्त कील्ण-नाप्पिया' चार चपल चित्त काटन-द्रव प्रिया -चञ्चलानपि चपगानि चित्तानि येषा ते चालनपलचिना अनिचपर मानसा , कीडन-कीडा, द्रयश्च परिहास काटाची प्रियो येपा त कोडायप्रिया , तत पद द्वयस्य कर्मधारय । 'गभीर हसिय भणिय-पीय गीय-णचण ई गम्भार हसित-भणितप्रिय-गीत-नर्तन रतय -गम्भीरम् इतररनेय हसित-हास्यम्, भगित-बाहप्रयोग , प्रिय येषा ते गम्भीर-हसित भगित प्रिया , गीतनर्तनयो रतियेंपा त गीतनतनरतय ,तत पदव्यस्य कर्मधारय । 'वणमाला मेल मउड कुडल सच्छद-विउन्धिया हरण-चारु-पिभूसण परा' वनमाला sऽमेल मुकुट कुण्डल-स्वच्छन्द-चितुर्विताऽऽभरण चारु विभृपण धरा -चनमाला-रत्नानिमयाss भरणविशेष , आमेल --पुप्परचितालझारविशेष , मुकुट-सुवर्णमय मिंगभूपगम्, कुण्डल कर्णाऽभ रणम्, एतदतिरिक्तानि-स्वच्छ दविसर्वितानि स्याभिप्रायानुसारा सद्य प्रकटीकतानि आभरणानि, कहते हैं-(चचल-चवल-चित्त-कीलण-दव-प्पिया) अति चपल चित्तवाले ये व्यन्तर देव, क्रीडा एव परिहास-प्रिय हुआ करते है। (गभीर-हसिय-भणिय-पीय-गीयणच्च-गरई) दूसरों द्वारा अज्ञेय ऐसे हसित-हँसन मे तथा बोलने की चतुराइ मे ये विशेष निपुण होते है, अथवा हसित एव भगित, ये दो बाते इहे विशेष प्रिय होती है । गीत और नर्तन मे इहे विशेष अनुगग होता है । (वणमाला-मेल-मउड-कुडल-सच्छद-विउ चिया-हरण-चारु-विभूसण-धरा) वनमाला-रत्नादि द्वारा निर्मित आभरणविशेष, आमेलफ-पुष्पा द्वारा रचित अलकार विशेप, मुकुट-सुवर्गमयशिरोभूपण, कुडलकर्णाभरण, एव अपनी इच्छानुसार निष्पादिन और भी अन्य आभरण ये ही जिनके सुहारने आभूषग चवल-चित्त-कीलण-दर-प्पिया) गहु ४ सय चित्तपात व्यन्त२ वी. मेष परिहासप्रिय होय छ (गभीर हसिय-भणिय पीय-गीय णचण रई) मीथी ન જાણું શકાય એવા હસિત-હેસવામાં તેમ જ ભણિત–લવામાં તેઓ વિશેષ નિપુણ હોય છે અથવા હસિત એવ ભણિત આ બે વાતે તેમને વિશેષ પ્રિય હોય છે ગીત અને નાચમાં તેમને વિશેષ અનુરાગ હોય છે (यणमाला मेल मउड कुडल सम्छद निउब्बिया हरण चारु विभूसण धरा) पनामा રત્નાદિ દ્વારા નિર્મિત આભરણ વિશેષ, આમેલપુષ્પા દ્વારા રચિત અલકાર વિશેષ. મુકુટ-સુવણમય શિરોભૂષણ, કુડલ-વર્ષાભરણ, તેમ જ પિતાની ઈચ્છા નસાર નિષ્પાદિત બીજા પણ આભરણે, એ જ જેમને વિહામણા આભૂષણો છે