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________________ ३१० ओपपातिक मत्र - man a newmare सुपण्ह-सासा गामे गामे एगराय जगरणगरे पंचरायं इज्जता श्रेष्ठा--सार्थवाहा - धागत मनसायिा । 'मुमुः मुगभाय मुपण्ड सासा' गति(मुचि) सुसम्भाषा-सुप्रभ-स्वागा-मुष्ठ युतयो येषा त सुश्रुतय - सन था -ममिनाता, अथवा सुशुचय --सम्याधुद्धिम त । मुख्य =मुगनाफ सम्भापो पा त मुमभाषा का चिदपि कद्रचारण न उर्वत । शोभना प्रशा गात गुण--अमितममुचितप्रमाण, शोभना आगा येपा ते स्वागा -मुक्तिमाय, चतुगामपा वर्मधारये-सुश्रुतिसुम भाषामुप्रभ स्वागा , एवविधा सत 'गामे गामे एगराया गाम गामे पकगतम् प्रनिग्रामम् गरम , अस्य 'दइजता' इत्यनेन सहा वय । 'गगरे नगरे पचराय' नगरे नगरे पचगनम्-अनिनगर पञ्चरान, 'इज्जता' द्रात बसत , यातूनामने कार्य वाा, 'जिठिया' जितन्द्रिया 'गिभ मुनिजन सिद्धिरूप पग-पतन क म मुग होत है। ( समगरसत्यवाहा) इनरु साया श्रम गश्रेष्ठरूप सार्थवाह व्यवसायिजन होत है । (मुमुद-मुसमास मुपम्हसासा) ससिद्धाता के ये पारगत होते है, अथा| इनका सिद्धान्त समाचान-निटोंप होता है, अर्थमा ये विशिष्ट-शुद्वि-पन्न होते है । भाषा उनकी वडा ही मनोमुग्धकारी होता है | कभी भी ये कटुक भापा का उच्चारग नहा करते है । ये जो भी प्रा करते हैं वह प्रमागोपेत होता है-व्यर्थ के अक्षरों का उसम समावा नहीं रहता। सासारिक पदाथा म फिसा म भा इनकी इच्छा जागृत नहीं होती, सिर्फ मुक्ति प्राप्त करन का भावना हा एक उनकी रहा करती है । (गामे गामे एगराय णयरे पचराय दज्जता) ये साधु ग्रामों में एक रात और नगरों म पाच रात निवास करत य । (जिदिया) ये जितेन्द्रिय थे पशु-पत्तनली मन्भुप हाय (समरसत्थवाहा) तमना साथी श्रमश्रेष्० ३५ सार्थवा-व्यवसायी ४ बाय (सुसुइसुमभाससुपण्हमासा) सत्स द्धा તમાં તેઓ પાર ગત હોય છે અથવા–તેઓના સિદ્ધાન્ત નિર્દોષ હોય છે, અથવા તેઓ વિશિષ્ટ શુદ્ધિપુન્ન હોય છે ભાષા તેમની બે જ મને મુગ્ધ કરવાવાળી હોય છે દીપણ તેઓ કડવીભાષાને ઉ-ચાર કરતા નથી તેઓ ર હાઈ પ્રશ્ન કરે છે તે પ્રમાણુવાળ હોય -ન્યથ અક્ષરોનો તેમાં સમાવેશ રહેતું નથી સામારિક પરાર્થોમા ઈમાં પણ તેમની ઈચ્છા જાગૃત થતી નથી भान भुलित आत पानी खान ये तेमने घा ८२ (गामे गामे एगराय णयरे गयरे पचराय दइजता ) | आधुणा आभागाभा ग.. on सधा भने नगरामा पान्य रात सुपी निपाम ताला । निया)
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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