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________________ पीयूपवर्षिणी-टोका व ३० प्रतिसलीनतात पोषर्णनम् २३३ विफलीकरण, से त केसायपडिसलीणया । से कि तं जोगपडिसलीया ? जोगपडिसलीणया तिविहा पण्णत्ता, त जहा - १ मणजापडसलीणया, २ वयजोगपडिसंलीणया, ३ कायजोगपडिसलीविफलीकरण - लोभस्योन्यनिरोधो वा, उदयप्रामस्य या लोभस्य निकलीकरणम्-परस्वग्रहणामा लोभस्तम्योन्य एव निराकरगीय, कथञ्चित्वापि वस्तुनि लोभे सत्यपि स लोभ उत्तोऽपि निपचनान 18 | 'सेत सायपडिसलीणया ' सैपा रुपायप्रति समानता |४| ' से कि त जोगपडिसलीणया ' अथ का सा योगप्रतिसलीनता ' 'जोगपडिसलीणया' गोगप्रतिम दीनता - 'तिविहा पण्णत्ता' विविधा प्रज्ञमा 'त जहा तद्यथा 'मणजोगपडिसीणया ' मनोयोगप्रतिमलीनता - योगो = वध, कर्मणा मनसो योगो - मनोयोग, तस्य प्रतिसमानता - निरोधशाला १। 'वयजोगपडिसलीणया ' - वाग्योगप्रतिमलीनता २। ' कायजोगपडिसलीणया ' काययोगप्रतिमलीनता ३। ' से किं त चाहिये ३ । इसी प्रकार लोभ भी आत्मा में उदित न हो सके, इस प्रकार प्रवृत्ति करनी चाहिये, यदि वह उदित हो चुका हो तो उसे विफल कर देना चाहिये ४ | तात्पर्य यह है कि चारों कषायों को जैसे भी बने उस प्रकार से जीतना । ( से त कसायपडिसलीणया ) यह कपायप्रनिसलीनता है । ( से किं तं जोगपडिसलीणया ) योगप्रतिसलानता क्या है' (जोगपडिसलीणया विविध पण्णत्ता ) योगप्रति सलीनता तीन प्रकार की कहो गई है, (तजा) वह इस तरह से, (मणजोगपडिसलीणया वयजोगपडिसलीणया कायजोगपडिसलाणया ) कर्मों के साथ मनका बधन होना सो मनोयोग है, उसका गोपन करना मनोयोगप्रतिसलानता है । वचनयोगप्रतिसलीनता एव काययोगप्रतिमलीनता भी चचनयोग को गोपना एव काययोग को गोपना है । इसी विषय को आगे के सूनाग से सूत्र આ માટે પ્રયત્ન કરવા જોઈ એ કદાચ તે ઉન્નત થઇ ચુકયા હાય તા તેને નિષ્ફળ કરી દેવુ જોઈએ ૪ तात्पर्य मे छेडे थारेय उपायाने प्रेम अने तेवा प्रारे तवा ( से त कसाय डिसलीणया ) या उपायप्रतिस सीनता छे (से किं त जोगपडिसलीणया ) प्रश्न- योग प्रतिस सीनता शु छे? उत्तर- (जोगपडिसलीणया तिनिहा पण्णत्ता) योगप्रतिस सीनता त्रा प्रभारनी उहेवाय े, (त जहा) ते या प्रभा छे - ( मणजोगपडिसलीणया वय जोगपडिसलीणया कायजोगपडिसलीणया ) भोनी साथै भन्नु अधन थाय ते મનાયેાગ છે તેનુ ગેાપન કરવુ તે મનેાયેગપ્રતિસ લીનતા છે વચનયાગપ્રતિ સલીનતા તેમજ નાયયેાગપ્રતિસ લીનતા પણ વચનયેાગને ગેાપવુ તેમજ કાય
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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