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पीयूषयषिणी टीका सू २९ भगवदन्तेवासिवर्णनम
२०३ मृलम्-तेसि ण भगवताण एएण विहारेण विहरमाइ यर्थ । ' इहलोग-परलोग-अप्पडिपदा' इहलोकपरलोकाऽप्रतिपदा - लोकद्वयसुखासतिहिता , 'ससार-पार-गामी' ससार-पार-गामिन -भासमुद्रत स्वपरामतारका , 'कम्मणिग्यायणढाए अन्भुट्टिया विहरति कर्मनिघातनार्थमभ्युथिता -सफलफर्मनिर्जरणार्थ कृतोद्यमा विहरन्ति ।। मू० २९ ॥
टीका-'तेसि ण' यानि । तेपा श्रीमहावीरस्वामिनिष्याणा' 'भगवताण' __ भगरता-तप - यमगोभा गरिनाम, 'एएण विहारेण पिहरमाणाण' एतेन विदाग हिरताम्--तत्र रिहार =पिचरण-मुनिचया, यद्वा विविधैरनेकप्रकारैस्पपिभारवहन-पाठचलनपरोपहसनानिरूपै कायक्रेशै कर्माणि हियन्तऽनेनेति विहार , एतेन विहारेण-ग्रामनगरादुक्खा ) मुग्व एव दु बम समान परिणाम वाले थे। सुखमें हर्प एव दु सम विपाद इस प्रकार विपमता लिये इनके परिणाम नहीं थे। ( इहलोग परलोग-अप्पडिवद्धा) इस लोक-परमी एव परलोक सरधी सुसाकी आसक्ति इनके हृदयमें नहीं थी। (ससारपारगामी) ये भवरूपी समुद्रको तिरनेवाले थे। (कम्मणिग्यायणट्ठाए अन्मुट्ठिया विहरति) समस्त कर्मोकी निर्जरा करनेके लिये ही सयमाराधनमे तत्पर होकर विचरते धे ॥ सू० २९ ॥
'तेसि ण भगवताण' इत्यादि,
(तेसि ण भगवताण) महावार म्वामाके इन स्थविर भगव तोंका जो (एएण विहारण विहरमाणाण) इस प्रकारके विहार करते थे। विहार गन्दका अर्थ मुनिचर्या दुक्सा) सु तेभर मा मभान परियामाप तो सुसमा प तम हुममा विषा (शोs)सवी विषमता मनामा नाती (इहलोग परलोग अप्पडियद्वा) Pas-समधी तभर ५२४-समधी सुभानी मासहित तमनायमा नहीती (ससारपारगामी) तेस। सभी समुद्रन तपावा ता (कम्मणिग्घायणढाए अब्भुट्टिया विहरति) समस्त भाना નિજેરા કરવા માટે જ સ યમ-આરાધનમાં તત્પર થઈને વિચરતા હતા (सू २८)
'तेसि ण भगवताण' इत्यादि
(तेसि ण भगवताण) से महावीर स्वामीना स्थविर लगता (एएण विहारेण विहरमाणाण) मा प्रकारे विडार ७२ता ता, विडार सम्हने।