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________________ औपपातिकको जच्चकणगंपिव जायरुवा, आटरिसफलगा इव पागडभावा,कुम्मा नीरगणा -गण-रागाधुपरमा तस्मानिर्गता , गले यथा किंगपि रखनद्रव्य स्थिति न लभते तथैतेप्वनगारपु रागादयो न तिष्ठता यर्थ । 'जीरो पित्र अपडिहयगइ' जीव इव अप्रतिहतगतय-जीयो यथा गुभाशुमार्गमगाद यादतग या सरीन याति तथा अप्रतिहता गति]पा ते तया, देशागगटिपु अपतिमा विद्यारित्वेन वादादिपुकुतीर्थिकमतगिरगसामध्योपतयेन च अरम्बग्निगतय , 'जयणग पिव जायस्वा' जात्यानकमिव जातरपा -गोधितमुर्गमिव निर्मग-गगानिरहिता इयर्थ । 'आदरिसफलगा इस पागडभाषा' आफिरका र गफटमावा -प्रकटा =प्रकटिता , भावा -उत्पादत्र्ययधौव्यस्वभावका जागाजीपारिपदाथा यस्ते तथा, आदर्शफलका जैसे कोई भी रग स्थिति नहीं पा सकता, उसा प्रकार रागादिक भी उन अनगारा में ठहर नहीं सकते थे। अत ये शस क समान नीरजण कह गये हैं। (जीवो विव अप्पडिहयगई) जीप जिस फार शुभ और अशुभ कर्म के वश प्रेरित होकर अव्याहत गति से सर्वत्र चला जाता है उमा प्रकार इनका भी दश, नगर आदिम अप्रतिहतगतिपिहार होने से एव वाद-विवार आदि म कुतीर्थिक मतां के निरा करण करने की सामर्थ्य से युक्त होने से ये भा जीव के समान अस्खलितगतिवाले थे। (जच्चफणग पिव जायख्या) शोधितसुवर्ग के समान ये विल्कुल निर्मल थे। (आदरिसफलगा इव पागडभावा) आदर्श अर्थात् काच जिस प्रकार पतिविम्वित मुखादिक अवयवों को यथावस्थित प्रकट करता है उसी प्रकार ये भी अपने ज्ञान के द्वारा उत्पाद व्यय एवं ध्रौव्य-विशिष्ट जीवाजीवादिक पदार्थों को प्रकट करते थे। इनकी રાગાદિ પણ તે અનગારમાં રહી શકતા નથી, તેથી તેઓ શ ખની પેઠે ना२ ] ४२वाय छे (जीवाविव अप्पडिहयगइ) म शुभमने शुक्ष કર્મવશ પ્રેરિત થઈને અવ્યાહત ગતિથી સર્વત્ર ચાલ્યો જાય, તેમ તેઓની પણ દેશ નગર આદિમાં અપ્રતિહતગતિ-વિહાર હોવાથી તેમજ વાદવિવાદ આદિમા કુવીથિકમનુ નિરાકરણ કરવાનું સામર્થ્ય હોવાથી તેઓ પણ જીવની પેઠે અખલિતગતિવાળા હતા (जच्चकणग पिव जायरूवा) शोधेला सुपर्णनावा तसा मिस निर्भरता (आदरिसफलगा इव पागडभावा) PAIN यर्थात् म भ प्रतिनिमित મખ આદિક અવયવને યથાવસ્થિત પ્રકટ કરે છે (દેખાડે છે, તેમ તેઓ પણ પોતાના જ્ઞાન દ્વારા ઉત્પાદ, વ્યય તેમ જ ધ્રૌવ્યવિશિષ્ટ જીવ-અછવ--
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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