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________________ पोयूपयर्पिणी-नोका म् २० कृणिना मिद्वाना महावीरस्य च स्तुति १३२ ठाण सपत्ताण, नमोत्थु ण समणस्स भगवओ महावीरस्स गापि- 'न म पुनगपर्तत न म पुनगवर्तत' इति । इत्यम्-उक्तशिव वादिविशेषणविशिष्टम् । 'मिदिगदनाम पेय' मिद्विगतिनामधयम् , सिद्विगतिरिति नामधेय-नाम गम्य तत मिद्विगतिनामकम् 'ठाण 'म्यानम्-म्यायतेऽम्मिन इति स्थान काग्रमणम, 'सपत्ताग' मम्प्राप्तभा-ममाश्रितभ्य । ट्यदनधि-समुच्चयेन सर्वमिदापे या विशेषगोपादानपूर्वर नम कामाक्यमभिवाय सम्प्रति भगमन्महावारोदेश्यक नमस्कारमभि पत्ते-'नमीत्यु ण' नमोऽस्तु गल-'समणस्स भगवओ महावीरस्स' अमणाय भगवत--महानागय, अत्र यमगंगदेनायमयों बोद्रव्य -परकृतस्थान-निवासादग्गसम, पगपरोपमर्गप्वप्रकम्प नागिग्मिम , तपस्लेजोमानानलसम , गम्भीरत्वाद्जान का अपतग्ग नहा होरे से मिद्विगति नामक स्थान को-लोक के अग्रभाग म स्थित मुक्ति यान को-प्राप हा श्री मिदा को नमस्कार हो। यहा नक के इन पिशेषगों से समस्त मिदा की अपेक्षा से नमस्कार का कयन किया गया है। अन भगवान महापार को उ य क क यहा से नमस्कार करने का कथन सूत्रकार करते है-( नमोत्यु ण समगस्स भगवओ महावीरस्स जादिगरस्स तित्वगरस्स जाव सपारिउकामम्स मम पम्मायरियस्स धम्मोवदेसगम्स ) श्रमण भगवान महानार के लिये नमस्कार हो। श्रमण गट से मरकार ने प्रभु महावार म इन विशेषताओं का कयन किया है, वे कहते है भगवान महावार मर्प की तरह परक्त स्थान में निवास करने के कारण सर्प-सदृश हे। परापह व उपनगों के आने पर भी प्रभु अप्रकप थे, अत वे गिरिसम हे । तप एव तेजके धारक होने से प्रभु अग्नि-जैसे प्रतापशाला है। गाभार्य एव ज्ञानादिकरूप સ સામા જીવને અવતરવુ ન થાય એવા સિદ્ધિગતિ નામના સ્થાનને લેકના અગ્રભાગમા રહેલા મુક્તિસ્થાનને પ્રાપ્ત થયેલ શ્રીસિદ્ધ પ્રભુને નમસ્કાર છે અહી સુધીના આ વિશેષણોથી સમસ્ત સિદ્ધોની અપેક્ષાએ નમસ્કૃારનું કથન કર્યું છે. હવે ભગવાન મહાવીરને ઉદ્દેશીને અહી થી નમસ્કાર કરવાનું ન म २-(नमोत्थु ण समणरस भगवओ महावीरस्स आग्गिरम तित्य गरम्म जार मपानिउकामम्स मम धम्मायग्यिस्स धम्मोपदेसगस्स) भए सवान् મહાવીરને નમસ્કાર હે શ્રમણ શબ્દથી સૂત્રકારે પ્રભુ મહાવીરમાં આ વિશે પતાનું કથન કર્યું તેઓ કહે છે કે ભગવાન મહાવીર સપની પેઠે બજિાએ કરેલા નિવાસસ્થાનમાં રહેવાને કારણે સર્ષ જેવા કે “હ તેમજ ઉપસર્ગો આવતા પણ પ્રભુ ધ્રુજી જતા નહિ, માટે તે પર્વત
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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