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________________ ओपपातिकमत्र मरुय-मणंत-मस्खय-मव्वाबाह-मपुणरावित्ति सिद्धिगडनामधेय न्तीति मोचफास्तेभ्य , 'सबन्नूण' मवशेभ्य -स-मकरन्यगुण-पयायलक्षण वस्तुजात याथातथ्येन जान तीति सर्वनास्तेभ्य , 'सयदरिसीण' सर्वर्णिम्य - सर्व-समस्त पार्थस्वरूप सामान्येन द्रष्टु गीठ येपा त सर्प-शिनरतभ्य , स्थान विशेषणमाह-'सिप' शिव-निग्विलोपावरहित नाछिर-कल्याणमयम, 'अयल' अचलम् स्वाभाविकप्रायोगिकचलनक्रियाशून्यम्, 'अरुय' अरजम्-अविद्यमाना जा यत्र तत् , अविद्यमानगरीरमनस्कत्वाद् आधिन्याविरहितमि यर्थ , 'अगत' अन तम्अविद्यमानोऽन्तो नागो यस्य तत्, अत एव-'अरसय' अक्षयम्-नास्ति लेगतोऽ पि क्षयो यस्य तत्-अविनाशीयर्थ , ' अव्यागाह' अत्र्यानाधम्-न विद्यते व्यागाधापीडा द्रव्यतो भावतश्च यत्र तत् । 'अपुणरावित्ति' अपुनरावृत्ति-न मसारे पुनरावृत्ति =पुनरवतरण यस्मात् तत् , यत्र गवा न कदाचिदप्यात्मा निवर्तते, समाम्नातमन्यदूसरों को मुक्त कराने वाले सिद्ध प्रभु के लिये नमस्कार हो। (सवण्णूण सबदरिसीण) सर्वज्ञ-समस्त गुगपर्यायस्वरूप वस्तुसमूह के युगपत् यथार्थ ज्ञाता के लिये नमस्कार हो, एवं यथार्थ द्रष्टा के लिये नमस्कार हो। निशेपाकार बोध का नाम ज्ञान एव सामान्याकार नोध का नाम दर्शन है। (सिव-मयल-मस्य मणत-मक्खय-मवावाह-मपुगगवित्ति सिद्धिगठनाम पेय ठाण सपत्ताण) निखिल उपद्रवों से रहित होने के कारण गिर-कल्याणमय, अचल स्वाभाविक एव प्रायोगिक क्रिया से शून्य, अरुज शारीरिक एव मानसिक व्याधि और आधि से सर्वथा परिवर्जित, अनन्त, अविनाशी, अतएव अक्षयस्वरूप, अन्यावाध-द्रव्य और भान दोनों प्रकार की पीड़ा से निर्मुक्त, अपुरावृत्ति-जहा जाकर फिर मसार मे भुडत राबवावा सिद्ध प्रमुने नमः४॥२ डो (सवण्णूग सञ्चदरिसीण) સર્વજ્ઞ સમસ્ત-ગુણ-૫ર્યાવરૂ૫ વસ્તુમમૂહના યુગપત યથાર્થ જ્ઞાતાને નમસ્કાર હો, તેમજ યથાર્થ દ્રષ્ટને નમસ્કાર હો વિશેષાકાર બોધનું નામ ज्ञान तभ०४ सामान्या४२ साधनु नाम शन , (सिर मयल मरुय-मणत-मक्स यमव्यागाह-मपुणरावित्ति सिद्धिगइनामधेय ठाण सपत्ताण) स४७ पद्रवोथी રહિત હોવાના કારણે શિવ-કલ્યાણમય, અચલ–સ્વાભાવિક તેમજ પ્રાયોગિક સ્થિાઓથી શન્ય, અરૂજ-શારીરિક તેમજ માનસિક વ્યાધિ અને આધિથી સર્વથા પરિવર્જિત (મુકત), અનત, અવિનાશી અને તેથી અક્ષય-સ્વરૂપ,અવ્યાબાધ દ્રવ્ય અને ભાવ બન્ને પ્રકારની પીડાથી નિમુક્ત, અપુનરાવૃત્તિ-જ્યા જઈને પાછુ
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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