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________________ 2. औपपातिकमरे बोध प्राप्त । 'मोहए' बोधक बुध्यमानान् अन्यान् भन्यजीगन् प्रेरयतीति वोधक 'मुत्ते' मुक्त -अमोचि स्वय कर्मपारादिति मुक्त । 'मोयए' मोचक -मुन्य मानानन्यान् भन्यजीपान् प्रेरयतीति मोचक । 'सवण्ण' सन-सर्व सकलद्रव्यगुग-पर्यायलक्षण यस्तुजात याथातथ्येन जानातीति सर्वन । 'सव्वदरिसी' सर्वदर्शी--सर्व-समस्त पदार्थस्वरूप सामायेन द्रष्टु शीलमस्याऽसौ सर्वदशी । 'सिव' शिप निखिलोपद्रवरहितत्वाच्छिव-कन्यागमय, स्थानमित्यस्य विशेषगमिदम् । शिनादीना सर्वेषा द्वितीयान्तानामप्रेतनेन सपाविउकामे-इत्यनेन सम्बध । 'अयल' अचल स्वाभाविकप्रायोगिकचलनक्रियाशू-यम्। 'अरुय' अरुजम्--अविधमाना रुजो यस्य तारक है। (बुद्धे ) स्वय बोध को प्राप्त होने के कारण भगवान् बुद्ध है, ( बोहए) बुध्यमान अनेक भव्य जीवों को प्रेरित करने से वे बोधक है, (मत्ते) भगवान ने स्वय कर्मरूपी पोंजरे से मुक्ति प्राप्त की, इसलिये मुक्त हैं। (मोयगे) और कर्मरूपी पांजरे से मुक्त होने की इच्छावाले जीनों को उन्हों ने मुक्त किया इसलिये वे मोचक है । (सवण्ण) सकलद्रव्यों के समस्त गुण और पर्याया को युगपत् हस्तामलकवत् यथार्थ जानन से प्रभु सर्वज्ञ हैं। (सव्वदरिसी) तथा सामान्यरूप से त्रिकालवर्ता समस्त. द्रव्यों के द्रष्टा होने से प्रभु सर्वदर्शी हे । (सिव-मयल-मरुय-मणत-मक्खय-मवावाह-मपुणरावत्ति सिद्धिगडणामय ठाण सपाविउकामे ) निग्विल उपद्रव रहित होने से शिव-कल्यागमय, स्वाभाविक एव प्रायोगिक चलनक्रिया से श य होने के कारण अचल, शरार तथा मन से પ્રેરિત કર્યા તેથી તેઓ તારક છે (હું) પિતે બેધ પામેલા डावाना रणे लगवान बुद्ध (गोहए) मुध्यमान मन सभ्य छवाने सोध भाट श्रेरित ४२वाथी तेमा माघ छ (मुत्ते) लगवाने पोते भ३था पाराभाथी भुनि प्राप्त ग तेथी तमा भुत छ (मोयगे) अने में રૂપી પી જરામાથી મુક્ત થવાના ઈચ્છાવાળા જીને તેઓએ મુકત કર્યા તેથી तमा भाय छे (सवण्णू) स४८ द्रव्ये (पहाना) समस्त गुणू मने પર્યાને યુગપત્ હસ્તામલકવત્ યથાર્થરૂપે જાણવાથી પ્રભુ સર્વજ્ઞ છે (सव्वदरिसी) तथा सामान्य ३५या विसती' समस्त द्रव्याना द्रा वाथा पला सर्वशी छ (सिव-मयल-मरुय-मणत-मक्सय-मव्वाबाह-मपुणरापत्ति सिद्विगइणामधेय ठाण सपाविउकामे) सण 6पद्रव २डितहापाथी शिध्याय મય, સ્વાભાવિક તેમજ પ્રાયોગિક ચલન કિયાથી શૂન્ય હોવાના કારણે અચલ,
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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