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उत्तराध्ययन सूत्रे
शब्दो भिन्नक्रमः अतोऽयमर्थः- तपस्विनोऽपि मम श्रद्भिः =आमशैषध्यादिलब्धि रूपा नास्ति =न विद्यते, तस्या जप्यनुपलभ्यमानत्यात् । प्रसङ्गादिह लब्धिभेदा उच्यन्ते
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१ आमशपधिः, २ निमुडोपधिः ३ खेलोपधिः ४ जल्लोपधिः, ५ सर्वोषधि, ६ सभिन्नश्रोतोलब्धिः, ७ अधिलब्धि, ८ ऋजुम तिलब्धिः ९ निपुलमतिलब्धिः, १० चारणलब्धिः, ११ आशीर्विपलब्धि, १२ फेरलिलन्धि, १३ गणधरलब्धिः, १४ पूर्वधरलब्धि १५ अईछन्धि १६ चक्रनतिलब्धि, १७ बलदेवलब्धि, १८ वासुदेवलब्धि, १९/१ क्षीरासपलब्धि, १९ / २ मध्वास्रवलब्धि, १९ / ३ सर्पिरावलब्धि, २० कोष्ठद्धिलब्धि, २१ पदानुसारिलब्धि, २२ स्वर्ग से आया है, इसलिये प्रत्यक्ष से उनकी उपलब्धि का अभाव होने से परलोक नही है । (वा) अथवा ( तवस्सिणो इड्ढी अवि- तपस्विनः ऋद्धिः अपि ) तपस्वी जन को ऋद्धिकी प्राप्ति हो जाती है यह भी बात ठीक नही है, क्योंकि ऋद्धियों अर्थात् लब्धियों की सिद्धि भी प्रत्यक्षप्र माण से होती नही है । लब्धिया २८ प्रकार की हैं वे ये हैं
आमशैौषधि १, विप्रुडोपधि २, खेलौषधि ३, जल्लौषधि ४, सकैपधि ५, सभिन्न श्रोतो लब्धि ६, अवधिलब्धि ७, जुमतिलब्धि ८, विपु लमतिलब्धि ९, चारणलब्धि १०, आशीर्विपलब्धि ११, केवलिलब्धि १२, गणधरलब्धि १३, पूर्वधरलब्धि १४, अर्हल्लब्धि १५, चक्रवर्तिलब्धि १६, बलदेवलब्धि १८, क्षीरास्रवलब्धि १९।१, मध्वास्रवलब्धि १९/२, सर्पि रावलब्धि १९१३, कोष्ठबुद्धिलब्धि २०, पदानुसारिलब्धि २१, बीज
જઈ પાછા અહિ આવી તે એમ કહે કે હુ અમુક સ્ત્રાઁમા જઈને આવ્યા છુ. આ માટે પ્રત્યક્ષથી તેની ઉપલબ્ધીને અભાવ હોવાથી પરલેાક નથી અથવા तवसिणो इड्ढी अवि तपस्वीमने ऋद्धियोनी प्राप्ति यह लय छे से वात पा ઠીક નથી કેમકે, ઋદ્ધિયાની સિદ્ધિ પણ પ્રત્યક્ષ પ્રમાણથી થતી નથી ઋદ્ધિચા ૨૮ પ્રકારની છે તે આ પ્રમાણે છે
(१) आमशैषिधि, (२) विभुडेोषधि, (3) मेलोषधि, (४) सोषधि, (घ) सर्वोषधि, (९) सलिन्नश्श्रोतोसधि, (७) अवधिसन्धि, (८) ऋभुमति सन्धि, (६) विधुसमतिसन्धि, (१०) न्यारासन्धि, ( ११ ) आशीविषसधि, (१२) देवसीसम्धि, (१३) अयुधरसब्धि, (१४) पूर्व धरसन्धि, (१५) अईटषि, (१६) अवर्तिसन्धि, (१७) जसदेवसन्धि, (१८) वासुदेवसब्धि, (१८) क्षीरासव- ) पहानु લબ્ધિ, મવાસવલબ્ધિ, સપિંરાસવલબ્ધિ, (૨૦) કાબુદ્ધિલિ