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मियदर्शिनी टीका अ० १ गा० ११ क्रोधवशतो मृपाभापणे तदनपलाप ७३ च-पुनः, कृतम् अनाचरित चण्डालीकादिक, नो कृतमिति-मृपामापण मया न कृतमित्येव भाषेत । जय भाष:-गुरुशुश्रूपाकारिगोऽपि शिप्यस्य कयचिदतीचारसभवे गुरुसनिधो तदालोचना करणीया। जालोचना हि-मोषमार्गविगतकानामनन्तससारवर्धकाना माया-निढान-मिथ्यादर्शनशल्याना निष्कर्पणी, ज्ञानावरणीयाघष्टविपर्ममलापकपणी, शुद्धात्मस्वरूपदर्शनी, तचातचरिमर्शनी, अव्यागधमुग्मर्पिणीति ॥११॥
(आच-कदाचित्) यदि अकस्मात् (चडालिय कटु-चडालीक कृत्वा । फ्रोध के आवेश से अकस्मात् झूठ बोला गया हो तो भी उसे (फयाविन निन्दविन्न-कदापि न निदनुवीत) कभी भी किसी भी परिस्थिति में छिपाना नहीं चाहिये। (कड कटेत्ति भासेना-कृत कृतमिति भापेत ) ऐसा नहीं कहना चाहिये कि मैने कोपादिक के आवेश से असत्य भाषण नही किया है किन्तु ऐसा ही कहना चाहिये कि मेरे द्वारा क्रोधादिक के आवेश से असत्यभापण अवश्य-अवश्य हुआ है, (अकड नो कडेत्ति य-अकृत नो कुतमिति च) और जो क्रोधावेशसे असत्य नहीं बोला गया हो तो ऐसा भी नहीं कहना चाहिये कि मने असत्य भापण किया है।
भावार्थ-यदि ऋोपादिक कपायो के जावेश से सहसा जमत्य मापण हो भी जाय तो उसे यह नहीं कहना चाहिये कि मैने असत्य भापण नहीं किया है । जैसे रक्त से दूपित वस्त्र रक्तसे वोने ___ आहन्च-काचित्-हाय यदि-15 भात् चडालिय कटु-चडालीकमत्वा अधना साशयी भात् तु मादी गायु डायत ५ तेन कयावि न निन्दुरिज्न-कदापि न निहनुपीत ही ५ ५ यतिभा छुपा नही ये कड कडेत्ति भासेज्ना-कृत कृतमिति भाषेत गेम न उहे
में था દિકના આવેમા અત્ય-ભાવણ કરેલ નથી–પરતુ એવું કહેવું જોઈએ કે
मा-नयी धना मावशमा असत्य सापY 13२४३२ ययुके अकट नो कडे त्तिय-अमृत नो कृतमिति च मन अधाशना सीधे ममत्य नारायु डाय તો એવું પણ ન કહેવું જોઈએ કે મે અસત્ય ભાષણ કર્યું છે
મતલબ આનો એ છે કે જે ક્રોધાદિક કક્ષાના આવેશથી સહના આ ત્ય-ભાણ થઈ જાય તો એવું ન કહેવુ છે કે મે અસત્ય-ભાવણ નથી કર્યું જે રીતે લેહીથી ખરડાયેલુ દૂષિત વસ્ત્ર લેહીથી ઘવાથી શુદ્ધ થતુ
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