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निरयाटिकामुत्रे
निः सा तथा पत्ता पार्श्वस्या पार्श्वे=साधुगुणानामेकः= नीति तथा अन्ना=सामाचारीपालने अवसीदति तथा शी=कु=कुत्सितं उत्तरगुणमतिमेनाशीलं गयाः मा तथा संसा=गृहस्थादित्यनेन होनेके कारण स्वच्छन्द मति हो गृहस्थीके बच्चोंसे करने लगी।
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उसके बाद सुभद्रा आर्या पार्श्वस्था=साधुके गुणांसे दूर श्री. पान्य-विहारिणी हो गयी. इसी प्रकार अवमन= सामाचारी मित्र से विहारिणी हो गयी। और उत्तर गुणमें दक्षेप लगाने तथा संवदन कपायके से कुशीला हो कृशील और गृहस्थ आदिके साथ प्रेम यन्न कारण नामाचारी शिथिलता प्रवृत्त हो संतविहारिणी अपने अभिप्राय कल्पित मार्ग प्रवृत्त हो रणी हो गयी | इस प्रकार बहुत वर्षों तक उसने पादन किया । अन्तमें अर्धमानिकी संदेखना होग afer aint area हारा देवन पापस्थानकी आलोचना और marite के य
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अपने उत्तगुण प्रतिसेवनम् मिण नहीं करा
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