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नन्दी
इह खलु भगवत्तीर्थङ्करोपदिष्टमर्थरूपमागममुपादाय गणधराः स्त्ररूपेण जग्रन्थुः । उक्तञ्च–“ अत्थं भासइ अरिहा, सुत्तं गंथंति गणहरा णिउगा " इत्यादि । तत्र पूर्वीपर विरोधरहितानि स्वतः प्रमाणभूतानि द्वात्रिंशत् सूत्राणि संपति समुपलभ्यन्ते । डूबते हुए जीवोंके लिये नौका जैसे हैं उनको मैं ( प्रणौमि ) मस्तक झुका कर नमस्कार करता हूँ ॥ ४ ॥
मैं मुनि घासीलाल (जैनीं सरस्वतीं नत्वा) जिनेन्द्रदेव के मुखचन्द्रसे निर्गत दिव्यदेशनाको नमस्कार करके (नन्दी सूत्रार्थदर्शिका ज्ञानचन्द्रिका क्रियते ) नन्दी सूत्र के अर्थको स्पष्ट करनेवाली यह 'ज्ञानचन्द्रिका' नामकी टीका बनाता हूं ॥ ५ ॥
' इह खलु ' इत्यादि - इस कालमें भगवान् तीर्थङ्करोंद्वारा उपदिष्ट अर्थरूप आगमको लेकर गणधरोंने उसका सूत्ररूप से ग्रथन किया है । अन्यत्र भी यही बात कही गई है- अत्थं भाइ अरिहा, सुत्तं गति गणहरा निउणा " इत्यादि ।
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अर्हन्त प्रभु अर्थरूपसे सर्व प्रथम आगमकी रचना करते हैं, पश्चात् गणधर उसकी प्ररूपणा सूत्ररूपसे करते हैं । वर्तमान समय में पूर्वापर विरोधरहित होने के कारण स्वतः प्रमाणभूत ३२ बत्तीस सूत्र उपलब्ध हैं, वे इस प्रकार हैं
सागरमां डूमतां भवाने भाटे नौअसमान छे तेमने हुँ (प्रणौमि ) भाथु નમાવીને પ્રણામ કરૂ છું ॥ ૪ ॥
हुँ भुनि घासीदास (जैनीं सरस्वतीं नत्वा ) भिनेन्द्र हेवना मुभयन्द्र भांथी नीउणेसी हिव्य देशनाने नमन अरीले ( नन्दीसूत्रार्थदर्शिका ज्ञानचन्द्रिका क्रियते ) नन्हीसूत्रना अर्थने स्पष्ट १२नारी या ज्ञानयन्द्रिअ नाभनी टीअ ना ॥ ॥ इह खलु ' त्यिाहि.
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આ કાળમાં તીર્થંકર ભગવાના દ્વારા ઉપદેશાયેલ અરૂપ આગમાને લઈને ગણુધરેએ તેની સૂત્રરૂપે ગુથણી કરી છે. અન્યત્ર પણ એ જ વાત કહેવાઈ - " अत्यं भासइ अरिहा, सुत्तं गंथति गणहरा निउणा " त्याहि
અહીંત ભગવાન સર્વ પ્રથમ અરૂપે આગમની રચના કરે છે. પછી ગણધર સૂત્રરૂપે તેની પ્રરૂપણા કરે છે. વર્તમાન કાળમાં પૂર્વાપરવિધ વિનાના होवाने अरये स्वतःप्रभालुलूत (३२) मत्रीस सूत्रो उपलध (आप्त) छे. ते નીચે પ્રમાણે છેઃ