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________________ प्रानचन्द्रिकाटीका-शानभेदाः। से उन्होंने उसी भवसे मुक्ति प्राप्त कर ली थी। सकल लब्धियोंकी एवं मनापर्यय ज्ञानकी सिद्धि उन्हें मुक्ति जानेसे पहिले हो चुकी थी ॥२॥ (महावीरलब्धरत्नोज्ज्वलो गणी) श्रमण भगवान् महावीरसे प्राप्त रत्नत्रयसे प्रकाशमान गणधर (श्रीसुधर्मा ) श्रीसुधर्मास्वामी ने (तदुक्तार्थ) भगवान्के द्वारा कथित अर्थको सकल जगज्जीवके उपकार के लिये ( निबबन्ध ) सूत्ररूप से गूंथा है । (नमस्तस्मै दयालवे ) ऐसे परम उपकारी दयालु श्री सुधर्मास्वामीको मैं नमस्कार करता हूं ॥३॥ (समां सगुप्तिसमितिम् ) सम्पूर्णरूपसे पांच समिति एवं तीन गुप्तियोंका पालन करनेवाले (सदाविरति आदधानम् ) सर्वदा सर्वविरति को धारण करनेवाले (क्षमावद् अखिलक्षमम् ) पृथ्वीकी तरह सब प्रकारके परीषहोंको सहनेवाले (कलितमजुचारित्रकम् ) निरतिचार चारित्रके पालन करनेवाले (अपूर्वबोधप्रदम् ) भव्य जीवोंको अपूर्व आत्मबोधको देनेवाले ऐसे (गुरुम् ) गुरुदेवको कि जिनका (सदोरमुखवस्त्रिकाविलसितोननेन्दुम् ) मुखचन्द्रमंडल सदा सदोरकमुखवस्त्रिकासे सुशोभित होता रहता है, तथा (भववारिधिप्लवम् ) संसाररूप समुद्र में કરી લીધી હતી. સર્વે લબ્ધિ તથા મન:પર્યવ જ્ઞાનને સિદ્ધિ તેમને મેક્ષ પામ્યાં પહેલાં થઈ ચુકી હતી. ૨ (महावीरलन्धरत्नोज्ज्वलो गणी) श्रम भगवान महावीर द्वारा प्राप्त २त्नत्रयथी प्रशभान गांध२ (श्रीसुधर्मा ) श्री सुधर्मा स्वाभीय ( तदुक्तार्थ ) भगवान ४थित मथने ४iतना स४ वान ५४२Nथे (निबबन्ध ) सूत्र ३५थी गूथेट छे. (नमस्तस्मै दयालवे ) मेqi ५२ ५४ हयाणु श्री सुध. સ્વામીને હું નમન કરું છું ૩ (समा सगुप्तिसमितिम.) पूर्ण ३२ पांय समिति तथा ३ गुप्तिने पानास ( सदा विरतिम् आदधानम् ) सह सर्ववितिने धारण ४२ना। (क्षमावत् अखिलक्षमम् ) पृथ्वीनी रे मा प्रा२ना परीषही सहन ४२ना। (कलितमजुचारित्रकम् ) नितिया२ यात्रिनi पाना। (अपूर्ववोधप्रदम्) भव्य वाने पूर्व माममा हुना। सवi (गुरुम् ) १३वन रेनु (सदोरमुखवस्त्रिकाविलसिताननेन्दुम् ) भुभयन्द्रम ॥ हो। साथैनी मुह५तीथी सुशलित मनी २७ छ, तया (भववारिधिप्लवम् ) रे सा२३५ी
SR No.009350
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages940
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size58 MB
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