________________
स्थविरावली अर्थःश्रेष्ठ जातिमान काले मणिके सद्दश वर्णवाले तथा पकि द्राक्षा के समान काले वर्णवाले और नीलकमल के समान नील शरीर वर्णवाले रेवती नक्षत्र नामक आचार्यका वाचकवंश बढे । ये श्री रेवती नक्षत्रजी श्री आर्यनागहस्तीजीके शिष्य थे ॥ ३५ ॥
मूलम्
अयलपुरा णिक्खंते, कालियसुय आणुओगिए धीरे । बंभद्दीवगसीहे, वायगपयमुत्तमं पत्ते ॥ ३६॥
छाया-- अचलपुरानिष्क्रान्तान् कालिकश्रुतानुयोगिकान् धीरान् । ब्रह्मदीपकसिंहान् , वाचकपदमुत्तमं प्राप्तान् ॥३६ ॥
अर्थ:-- मैं अचलपुर से निष्क्रान्त ( प्रबजित ) कालिकमुत्ररूप शास्त्रके अनुयोग (व्याख्या ) के ज्ञाता धीर उत्तमवाचकपदप्राप्त ब्रह्मद्दीपकी शाखासे उपलक्षित श्री सिंहाचार्यको वन्दन करता है। ये रेवति नक्षत्राचार्य के शिष्य थे ॥ ३६॥
मूलम् जेसि इमो अणुओगो, पयरइ अन्जावि अड्ढभरहम्मि । बहुनयरनिग्गायजसे, ते वंदे खंदिलायरिए ॥ ३७ ॥
छाया-- येपामयमनुयोगः प्रचरत्यद्याप्य भरते । वहुनगरनिर्गतयशसः, तान् वन्दे स्कन्दिलाचार्यान् ॥ ३७॥
अर्थःमैं जिनका यह ( इस समय में उपलभ्यमान ) अनुयोग अर्द्धभरत (भरतक्षेत्र के अर्ध-दक्षिण भरतक्षेत्र ) में आज भी प्रचलित है अनेक नगरों में अभ्युदित प्रस्त
२ ५४