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________________ ર छाया- एलापत्यस गोत्रं वन्दे महागिरिं सुहस्तिनञ्च । ततः कौशिकगोत्रं, बहुलस्य सदृग्वयसं वन्दे ||२७|| अर्थः मैं एलापस्य गोत्र वाले श्रीमहागिरि और श्रीसुहत्स्याचार्यको वंदन करता हूँ, उसके बाद कौशिक गोत्र [ विश्वामित्र गोत्रोत्पन्नं ] श्री बहुलमुनिके समानवयवाले बलिस्सहजी को वन्दन करता हुं। इनमें श्रीमहागिरिजी श्रीस्थूलभद्रजी के शिष्य थे, और श्रीसुहस्तीजी भी श्रीस्थूलभद्रजी के ही शिष्य थे, श्रीमहागिरिजी के श्री बहुलजी और श्री बलिस्सहजी ये दो प्रधान शिष्य थे ||२७| मूलम् १ २ ३ ८ ५ ६ हारियगुतं साई च, वंदिमो हारियं च सामजं । ८ ११ १० वंदे कौसियगोत्तं, संडिलं अजजीय धरं ॥ २८ ॥ छाया हारीतगोत्रं स्वीर्ति च, बन्दामहे हारीतं च श्यामार्यम् । बन्दे कौशिक गोत्रं, शाण्डिल्यमार्यजीतधरम् ॥२८॥ - स्थविरावली अर्थः हम हारीतगोत्र श्री स्वात्याचार्य और हरीतगोत्र श्री श्यामार्यजी को वन्दन करता हूं, मैं का शिकगोत्र श्री शाण्डिल्याचार्य और श्री आर्यजीतधराचार्यजी को वन्दन करता हूं, इनमें श्री स्वातिजी बलिस्सहजी के शिष्य थे, श्यामार्य श्रीस्वातिजी के शिष्य थे, किसीने श्यामार्य श्री शाण्डिल्यजी काही आर्यजीतधर यह विशेषण लगाकर वन्दन कहा है, उसका अर्थ - " मर्यादादर्शक सूत्रधारक है ||२८|| मूलम् २ ३ तिसमुद्दखाय कित्ति, दीवसमुद्देसु गहिय पेयालं । ६ ४ वंदे अज्जसमुहं, अक्खुभिय समुद्द गंभीरं ॥ २९॥
SR No.009350
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages940
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size58 MB
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