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________________ स्थविरावली सुहम्मं अग्गिवेसाणं, जंबूनामं च कासवं । ७६ ११ १०९ ८ पभवं कच्चायणं वंदे, वच्छं सिजंभवं तहा ॥ २५ ॥ छाया--- सुधर्माण मग्निवेश्यायनं, जम्बूनामानं च काश्यपम् । प्रभवं कात्यायनं वन्दे, वात्स्यं शय्यम्भवं तथा ॥२५॥ अर्थ:मैं अग्निवेश्यायन गोत्र श्री सुधर्म स्वामी काश्यपगोत्र श्री जम्बूस्वामी कात्यायन गोत्र श्री प्रभवस्वामी और वत्सगोत्रोत्पन्न श्री शय्यम्भवस्वामी को मैं वंदन करता हुँ ॥२५॥ मूलम् जसभदं तुंगियं वंदे, संभूयं चेव माढरं । भद्दबाहुं च पाइन्न, थूलभदं च गोयमं ॥ २६ ॥ छायायशोभद्रं तुङ्गिकं वन्दे, सम्भूतं चैव माढरम् । भद्रबाहुं च प्राचीनं, स्थूलभद्रं च गौतमम् ॥२६॥ ____ अर्थ:मैं तुङ्गिकगोत्र श्री यशोभद्रस्वामी माठर गोत्र श्री सम्भूतस्वामी प्राचीन गोत्र श्री भद्रबाहुस्वामी और गौतमगोत्र श्री स्थूलभद्रस्वामी को वंदन करता हुँ, इन चारों में यशोभद्रस्वामी श्री शय्यम्भवस्वामी के शिष्य थे, श्री यशोभद्रस्वामी के शिष्य श्री सम्भूत (विजय) हैं. श्री सम्भूतस्वामी के शिष्य श्री स्थूलभद्राचार्य हैं ॥२६॥ मूलम् एलावच्चसगोत्त, वंदामि महागिरि सुहत्थिं च । तत्तो कोसियगोत्त, बहुलस्स सरिव्वयं वंदे ॥ २७ ॥
SR No.009350
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages940
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size58 MB
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