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________________ स्थविरावली. मूलम् कम्मरयजलोह विणिग्गयस्त, सुयरयणदीहनालस्त । पंचमहव्वय थिरकण्णियस्त, गुणकेसरालस्स ॥ ७॥ छायाकमरजोजलौघविनिर्गतस्य, श्रुतरत्नदीर्घनालस्य । पञ्चमहाव्रतस्थिरकर्णिकस्य, गुणकेसरवतः ॥ ७॥ मूलम् सावगजणमहुयरपरिवुडस्स, जिणसूरतेयबुद्धस्स । संघपउमस्स भई, समणगणसहस्रपत्तस्स ॥ ८॥ छायाश्रावकजन मधुकर परिवृतस्य, जिनसूर्यतेजोबुद्धस्य । सङ्घपद्मस्य भद्रं, श्रमणगणसहस्रपत्रस्य ॥ ८॥ (युग्मम् ) अर्थःकर्मरूप रज (कीचड ) और जलसमूहसे निकले हुए शास्त्ररूप रत्नमय लम्बायमान नालवाले अहिंसादि पांच महाव्रतरूप दृढ कणिकावाले, क्षमा-आर्जवादि उत्तरगुणरूप केसर ( किञ्जल्क ) वाले, श्रावक जनरूप भौरों से घेरे हुए तीर्थङ्कररूप सूर्यके तेज (किरण) से विकसित साधुसमूहरूप हजार पत्रवाले सङ्घरूप कमल का कल्याण हो ॥ ७-८॥ , मूलम् तव संजममयलंछण, अकिरियराहमुहदुद्धरिस ! निचं । जय संघचंद निम्मल,-सम्मत्तविसुद्धजोण्हागा! ॥९॥ छायातपः संयम मृगलाञ्छन ! अक्रियराहुमुखदुर्धर्ष ! नित्यम् । जय सचन्द्र ! निर्मल, सम्यक्त्व विशुद्धज्योत्स्नाक ! ॥९॥ ६४
SR No.009350
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages940
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size58 MB
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