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पानचन्द्रिकाटोका-शान मैदाः । (स्त्रीमोक्षसमर्थनम् )
२४५ न चेह स्त्रीशब्दस्यान्यार्थकत्वं परिकल्पनीयम् , तद्धिलोकरूढितः, आगमपरिभाषातो वा भवेत् । तत्र लोकरूदितस्तावदन्यार्थकत्वं न संभवति, लोके हि यस्मिन्नर्थ यः शब्दोऽन्वयव्यतिरेकाभ्यां वाचकत्वेन दृश्यते, स तस्यार्थः, यथा गवादिशब्दानां सास्नादिविशिष्टादयः, स्त्रीशब्दस्य लोकप्रसिद्धमर्थमन्तरेणान्यरय न वाच्यत्वेन लोके शास्त्रे वा प्रतीतिरस्ति । में आगम प्रमाणका भी अभाव नहीं है, देखो-" इत्थीपुरिससिद्धाय" यह वाक्य स्वयं आगम प्रमाण है। इससे साक्षात् स्त्रीके मोक्षकी सिद्धि होती है, क्यों कि यह वाक्य स्त्रियों में अर्थतः मोक्षके कारणोंकी
अविकलताको सिद्ध करता है। ___यदि कहो कि यहाँ “ स्त्री" शब्द अन्यार्थक है सो ऐसा भी कथन ठीक नहीं है, कारण कि यह 'स्त्री शब्द अन्यार्थक है' यह वात आप क्या लोकरूढिसे या आगमकी परिभाषासे कहते हो ? किससे कहते हो ? सो कहो, यदि लोकरूढिसे कहते हो सो यह मान्यता आपकी ठीक नहीं है, कारण कि लोकमें तो यही माना जाता है कि जिस अर्थ में जो शब्द अन्वय-व्यतिरेक संबंधद्वारा संकेतित होता है वह शब्द उसी अर्थ को कहता है, भिन्न अर्थको नहीं । “ स्त्री" यह शब्द अन्वय-व्यतिरेक द्वारा स्त्रीरूप साध्य अर्थमें ही प्रयुक्त किया गया मिलता है, अतः स्त्री रूप पदार्थ ही इस स्त्री-शब्दका वाच्य है। जैसे गो आदि शब्दोंका वाच्य सास्ना (गलकंबल ) आदिसे विशिष्ट पदार्थ होता है । इस स्त्री गुमा-" इत्थीपुरिससिद्धा य” मा पाध्य पात मागमप्रमाण छ, तथा સાક્ષાત્ સ્ત્રીના મોક્ષની સિદ્ધિ થાય છે કારણ કે આ વાક્ય સ્ત્રીઓમાં અર્થતઃ મોક્ષનાં કારણોની અવિકલતાને સિદ્ધ કરે છે.
ने मा५ सेम उता डोगडी “स्त्री" २६ मन्या छ तो मे કથન પણ બરાબર નથી કારણ કે આ “સ્ત્રી શબ્દ અન્યાર્થક છે” એ વાત આપ શું લેકરૂઢીથી કે આગમની પરિભાષાથી કહો છે ? શાથી કહે છે તે બતાવો. જે લેકરૂઢીથી કહેતા હો તે આપની એ માન્યતા બરાબર નથી, કારણ કે લોકોમાં તો એજ મનાય છે કે જે અર્થમાં જે શબ્દ અન્વયુવ્યતિરેક સંબંધદ્વારા સંકેતિત હોય છે, તે શબ્દ એજ અર્થ દર્શાવે છે, જુદો નહીં “ स्त्री" ॥ ६ सन्क्यव्यतिरे द्वारा श्री३५ साध्य अर्थमा १ १५२येस भणे छ, तेथी भी३५ पहा १ २॥ "सी" शहना पाय छे. म "गो" माह शहोना वाय सास्ना ( MR) हिथी विशिष्ट पहार्य छे. मा