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________________ f १० जैनागमवारिधि-जैनधर्मदिवाकर - उपाध्याय- पण्डित - मुनि श्री आत्मारामजी महाराज ( पञ्जाब) का आचाराङ्गसूत्र की आचारचिन्तामणि टीका पर सम्मतिपत्र मैंने पूज्य आचार्यवर्य श्री घासीलालजी (महाराज) की बनाई हुई श्रीमद् आचाराङ्गसूत्र के प्रथम अध्ययन की आचारचिन्तामणि टीका सम्पूर्ण उपयोगपूर्वक सुनी। यह टीका, न्यायसिद्धान्त से युक्त, व्याकरण के नियम से निबद्ध है । तथा इसमें प्रसङ्ग २ पर क्रमसे अन्य सिद्धान्त का संग्रह भी उचित रूप से मालूम होता है । टीकाकार के अन्य सभी विषय सम्यक प्रकार से स्पष्ट किये हैं, तथा प्रौढ विषयों का विशेषरूप से संस्कृत भाषा में स्पष्टतापूर्वक प्रतिपादन अधिक मनोरंजक है, एतदर्थ आचार्य महोदय धन्यवाद के पात्र हैं । वि. सं. २००२ मृगसर सुदि १ मैं आशा करता हूं कि जिज्ञासु महोदय इसका भलीभांति पठनद्वारा जैनागमसिद्धान्तरूप अमृत पी-पी कर मन को हर्षित करेंगे, और इस के मनन से, दक्ष जन चार अनुयोगों का स्वरूपज्ञान पावेंगे । तथा आचार्यवर्य इसी प्रकार दूसरे भी जैनागमों के विशद विवेचन द्वारा श्वेतास्वर - स्थानकवासी समाज पर महान उपकार कर यशस्वी बनेंगे । जैन मुनि - उपाध्याय आत्माराम लुधियाना ( पंजाब ), शुभमस्तु बीकानेरवासी समाजभूषण शास्त्रज्ञ भेरुदानजी शेठियाका अभिप्राय आप जो शास्त्रका कार्य कर रहे हैं यह बडा उपकारका कार्य है । इससे जैनजनताको काफी लाभ पहुंचेगा । ( ता. २८-३-५६ के पत्रमें से )
SR No.009350
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages940
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size58 MB
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