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________________ सुदर्शिनी टीका अ0 ४ सू० ४ १५ युगलिनीस्वरूपनिरूपणम् ___४७१ कौमला अविरलो-परस्परमिलितो समसहितौ उचितप्रमाणयुक्तो वृत्तौ चर्तुली पीव रौ-पीनी निरन्तरा परस्परसम्बद्धौ अरू जानूपरितनभागौ यासा तास्तथा 'अट्ठावनी:-पष्ट-सठियपसत्य निधिण्णपिटुलसोणी' अष्टापदपीचिपृष्ठ सस्थितमगस्तविस्तीर्णपृथुलोण्यः अप्टापदस्य-गृतविशेपस्य पीचय इन वीचया तर झाकृतिरेग्या तयुक्त यत् पट्ट-फलकः, तहत् सस्थिता= तत्सस्थानयुक्ता तदाकतिका प्रशम्ता पिम्तीर्णा पृथुला विशाला श्रोणिः कटिभागा यासा तास्तथा 'वयणायामप्पमाणदुगुणियविसालमसलसुबद्धजहणवरधारिणीओ' वदनायामममाणाद्विगुणितविगालमामलसुनद्वजघनवरसारिण्यः = वदनस्य = मुखस्य यः आयामः विस्तारम्तम्य यत् प्रमाण तस्माद्विगुणित चतुर्नि गत्यङ्गुलमित्यर्थः, विशाल तथा मामल-पुष्ट सुपर-शैथिल्पार्जित जयन्नवर वरजघन-कटयाः पुरीभाग धारयति यास्तास्तथा ' बजरिराडयपसत्यलन्छणनिरोदरीओ' बन्न होता है । अत्यन कोमल होता है । अविरल-परस्पर मिला हुआ होता है । समसहित-उचितप्रमाण से युक्त होता है । वृत-वर्तुल-गोल होता है। पीचर-पीन-पुष्ट होता है । निरन्तर परस्पर सराद्ध होता है। (अट्ठावयवीदपट्टसठियपसत्यवित्यिण्णपिलसोणी) इनका कटिभाग गृतविशेप की वीचियों के समान तरजाकृति रेखाओं से युक्त फलक के जैसे आकार वाला होता है, प्रशस्त रोता है, विस्तीर्ण होता है नथा पृथुल विशाल होता है। (वयणायामप्पमाणदुगुणियविमालमसलसुबछ जहणवरधारिणीओ) इनकी कटिका पुरोभाग-जघन प्रदेश-मुख के विस्तार के प्रमाण ले विगुणित होता है-अर्थात्-चौयीस अगुलका होता है, विशाठ-पृथुल, एच मांसल-पुष्ट होता है। सुबद्ध-शैथिल्य विहीन- होता है । ( वज्जविराइयपसत्यलच्छणनिरोदरिओ) इनका ५२२५२ लेयेस डाय छ, समसहित-योज्य प्रभाशुपाणी-प्रभासरन डाय छ, ७ डाय छ, पीवर-पुष्ट खाय छ, म निरन्त२-५२०५२ सपा साय छ "अट्ठावयवीइप-सठिय-पसाथ-वित्थिण्ण-पिहुलसोणी" तमन। ५टा gd વિશેષની વિચિના સમાન તર ગાગૃતિ રેખાઓથી યુક્ત ફલકના જેવા આકા२पानी डाय , रात य छ, विस्तीर्ण डाय छे तथा पृथुल-वि डाय छ “वयणायामप्पमाणदुगुणिय विसालमसलसुबद्धजहणवरधारिणीओ" તેમની કેટિને આગળનો ભાગ જઘન પ્રદેશમુખના વિસ્તાર કરતા બે ગણું માપ હોય છે, એટલે કે ચાવી આગળનો હોય છે, વિશાળ અને भासद पुष्ट छाय छे, सुपर थिय विहीन डाय छ, “ वज्जपिराइय पसायरणनिरोदरीयो" तेमना ! सास रवा सु४२, मेटले हैं
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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