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मनोशाः तलिना : = मतला. तामा तामपर्णाः शुचय =स्वच्छाः स्निग्धाः = चिकणा' नखा यासा तास्तथा । ' रोमर हियरमटियभजण पत्थरपण कोपजप यला ' रोमरहितत्तसम्थितभजघन्यमनन्त क्षणाको प्यजङ्घा युगलाः = रोमर रहितं = निर्लोक छतसस्थित = अन्य उत्तम मानलक्षणमीमा ग्यचिद्दयुक्तम्, अकोप्य= समय न जङ्घायुगल यास तास्तथा, 'सुणिम्मियसुणिगूढजाणुमगल पसत्ययुद्धमधी' सुनिर्मितगुनिगूढ जानुमा मलपचस्तर द्धसन्धयः = तत्र सुनिर्मिती=प्रोमनसम्यान विशिष्टी सुनिगृदी = दुर्लक्ष्य जानुनो जानुद्वयस्य मम= पुष्टी प्रशस्ती =न्दराकारी = सन्नी = सन्धान स्थाने यासा तास्तथा 'कपली - खभार्डरंग- सठिय-निषण- मुकुमाल-मउय कोमल अविरल - समसठियापीवर निरतरोरू' कदलीस्तम्भातिरेक्स स्थित निर्वणसुकुमार मृदुकको मलाऽनिरलसमसहित तपी पर निरन्तरोराः तत्र कवली स्वम्माद तिरेकेण = अतिशयेन शोभनाऽऽरोहा रोहमुपेशल कोमलला दिगुणप्रकर्षरूपेण सस्थिती - सुन्दरसस्थानत्रन्तौ निर्मणो = निरुपहतौ सुकुमारमृदुन कोमलौ - अयन्त मनोज्ञ, तलिन - पतले, ताम्र- लाल, शुचि-स्वच्छ एवं स्निग्ध-चिकने होते हैं । ( रोमरविहसठिय-अजष्णपमत्थलक्सण- अकोप्पजघजुयला) इनका जधा युगल रोगरहित, वर्तुलाकार वाला अजवन्य-उत्तम सौभाग्यचिह्नों से युक्त एच अकोप्पसर्वप्रिय होता है (सुणिम्मियसु णिगूढजाणु मसलपसत्थसुद्वसधी ) इनकी दोनों जानु की सधियां शोभन सस्थान विशिष्ट, तथा सुनिगूढ़ होती है । पुष्ट और मुदाकार से युक्त होती है। मजबूत होती है । ( कयलीग्वभाइरेग सठिय निव्वण सुकुमाल मउय कोमल अविरल समसस्विट्टपीवरनिरतरोरु) इनकी दोनों जानु का उपरितन भाग कदली के स्तम से भी अधिक सुन्दर सस्थानवाला होता है । निर्माण-घाय आदि की निशानी से विहीन
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સુવાળા હોય છે रोमरद्दियव सठिय-अजण-पसत्य-लक्सण- अकोप्प - जघ जुयला " तेभनी भन्ने धामी रोम रहित, गोणार, अजघन्य-उत्तम, सौभाग्य यिह्नोथी युक्त मने अकोप्प सर्वप्रिय होय छे, " सुणिम्मिय- सुनिगूढ जाणुमसल सत्थ सुबद्धसघी " तेभनी जन्ने धायना साधना लाग सुडोण,
વ્યવસ્થિત તથા સુનિગૂઢ હાય છે તે જ ઘાએ પુષ્ટ અને સુદર આકારની होय छेभने मन्जूत होय छे " कयली सभाइ रेगसठिय- निव्वण-सुकुमालम
- कोमल - अविरल - समसहियवपीवर निर तरोरु" तेभनी जन्ने ४ घायोनी ઉપરના ભાગ કદલીના સ્તંભથી પણ વધારે સુંદર આકારના હાય છે, “નિર્મળ” घाव माहिनी निशानी विनाना हाय छे, अत्यंत अमण होय छे, अविलर