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________________ ५७० | এখানে मनोशाः तलिना=गतलातामा तागः शुनयापनकाग्निग्या विषयाः नखा यासा ताम्तथा। 'रोगरहियटमटियममाणपगत्यरायणप्रकोपमजु यला ' रोमरहिततसम्यितमनन्यमनस्तलक्षणाऽयोप्यमहायुगलाः = रोमर रदित-निर्लोमक तसस्थित कारम् अजयन्यम्-उत्तम मानलक्षण-मामा ग्यविदयुक्तम् , ओप्यसमिय न जलायुगल यारा ताम्तया, 'मुणिम्मियमुणिग्हमाणुममतपसत्यमुपद्धसधी । सुनिमितरनिगृहनानुमासलपमस्तमुन सन्धयः-तत्र सुनिर्मिती-गोमनसम्यानीिशिष्टीमुनिगृहौ- दुलेगौ जानुनो:जानुद्वयस्य मांसली-पुष्टी प्रशस्ती-शुन्दराकारी सुगौ-मुटो सन्धी-सन्धान स्थाने यासा तास्तथा 'कपली-खभाइरेग-सठिय-निम्षण-प्रकृमाल-मउय कोमल अविरल -समसहियाटपीपरनिरतरोरू' पदलीम्तम्मातिरेक्सस्थितनिणसुकुमार मृदुककोमलाऽपिरलसमसहितत्तपीपरनिरन्तरोरयः = नर कटली म्त माद तिरेकेण = अतिशयेन गोमनाऽऽरोहारोहमुपेगलसुमोमलत्वादिगुणप्रकपरूपण सस्थितो-मुन्दरसस्थानवन्तो निर्नगी = निरुपद्दती गुफुमारमृदुस्कोमलो-अत्यन्त मनोज्ञ, तलिन-पतले, ताम्र-लाल, शुचि-सन्त व स्निग्ध-चिकने होते हैं। (रोमरहिवसठिय-अजहण्णपसत्यलक्षण-अकोप्पनघजुयला) इनका जघा युगल रोगरहित, वर्तुलाफार वाला अजवन्य-उत्तम साभाग्यचिह्नों से युक्त एव अकोपसर्वप्रिय होता है (सुणिम्मियत णिगूढजाणु मसलपसत्यमुपद्धसंधी ) इनकी दोनों जानु की संधिया शोभन सस्थान विशिष्ट, तथा मुनिग्रह होती है । पुष्ट और सुदराकार से युक्त होती है । मजबूत होती हैं । (कयलीसभाइरेगसठियनिव्वण सुकुमाल भउय कोमल अविरल समसरियचट्टपीवरनिरतरोरु) इनकी दोनों जानु का उपरितन भाग कदली के स्तभ से भी अधिक सुन्दर सस्थानवाला होता है। निव्रण-घाव आदि की निशानी से विहीन सवा डाय छ “रोमरहियवद्रसठिय-अजहण्ण-पसत्थ-लक्षण-अकोप्प-जा जुयला" भनी भन्ने ४ धामी रोभ २डित, गाणार, अजघन्य-SH सोलाग्य थिोथी युवत मने अकोप्प सब प्रिय हाय छ, "सुणिम्मिय-सुणिगढ़ जाणमसलपसत्थ सुबद्धसधी " भनी सन्न घामाना साधाना मासु વ્યવસ્થિત તથા સુનિગૂઢ હોય છે તે જ ઘાઓ પુષ્ટ અને સુંદર આકાર हाय छेसने भाभूत हाय छे "कयली समाइ रेगसठिय-निव्वण-सुकुमालम उय-कोमल-अविरल-समसहियवद्दपीवरनिर तरोरु तेभनी भन्न ४ घामाना परन सा सीन स्तमथा पशु वधार स२ मारना डायछ, "नित्रण धाव माहिनी निशानी विनानी डाय छ, मत्यत आभा डाय छ, बिल
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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