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४६ अदत्तादान के तीस नामों का निरूपण
२६४-२६९ ४७ पञ्चम अन्तरगत तसरों (चोरों) का वर्णन
२७०-२७५ ४८ परधनलुब्ध राजाओं के सरूप का निरूपण
२७६-२८२ ४९ परधन में लुन्द्ध राजाओं के सग्राम का वर्णन
२८३-२९६ ५० अदत्तादान (चोरी) के प्रकार का निरूपण
२९७-३०१ ५१ सागर के स्वरूप का निरूपण
३०२-२०६ ५२ तस्कर के कार्य का निरूपण
३०७-३१७ ५३ अदत्तादान के फल का निरूपण
३१७-३२२ ५४ चोर लोक क्या फल पाते है उनका निरूपण
३२२-३३० ५५ अदत्तग्राही चोर कैसे होकर कैसे फल को पाते है उनका निरूपण
३३०-३४६ ५६ अदत्ताग्राही चोर जिस फल को पाते है उसका निरूपण ३४७-३५४ ५७ अदत्तग्राही चोर की परलोक मे कौन गति होती है उनका निरूपण
३५४-३६० ५८ जीव ज्ञानावरण आदि अष्टविध कर्मो से बधदशाको प्राप्तकर
ससारसागर में रहते हैं इस प्रकार का ससारगागर के स्वरूप का निरूपण
३६०-३७७ ५९. किस प्रकार के अदत्ताग्राही चोरों को किस प्रकार का फल मिलते है उनका निरूपण
३७८-३८६ ६० तीसरे अध्ययन का उपसहार
३८७-३९० चोथा अध्ययन ६१ अब्रह्म के स्वरूप का निरूपण
३९१-३९५ ६२ अब्रह्म के नामों का और उसके लक्षणों का निरूपण ३९५-४०० ६३ मोह से मोहित बुद्धिवालों से अब्रह्म के सेवन के प्रकारों का निरूपण
४००-४०३ ६४ चक्रवर्त्यादिको का और उनके लक्षणों का वर्णन ४०३-४१९ ६५ बलदेव और वासुदेव के स्वरूप का निरूपण
४१९-४४३ ६६ अब्रह्म सेवी कौन होते है ? उनका निरूपण
४४३-४४४