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________________ ८८ प्रश्नध्याकरणसूत्रे सुखजनका, 'पादुकावो' पादु'स: दुग्यपाल: 'मानो' महामय, महा भयजनकः 'बहुरयप्पगाहो' बहुरना मगानामनुरकर्मरजोगिः सम्भृतः 'दाम्णो' दारुणमीपणः 'फरसो' यश:ठोरः ' असाओ' अशाता अमुग्योऽशात फर्मवेदनीयस्वरूपः इत्येवविधफलत्रिपाक: 'याससहस्सेटिं। उपमहले पल्यो पमसागरममाणकालेः 'मुन्चइ ' मुन्यते-क्षीयते । तदा व्यतिरेकमुखेनाइ-'नय' न च त फल-रिपाकम् , 'अवेयउत्ता' अवेदयित्वा = अनुपमुन्य उपभोग विनेत्यर्थः 'हु' निश्चयेन 'मोक्खो' मोक्षः 'अत्यि' अस्ति 'ति' इति शब्द समाप्ति सूचर। __एतस्यार्थस्य साक्षात्ममाणभूतपरमात्मपतिपादितत्वेन प्रमाणयन्नाइ-- 'एवमाइसु ' इत्यादि। एवम्-उक्तरीत्या 'आह' ऊचुः पभादि तीर्थङ्करगणधरादय । तथा केवल आपातमात्र सुख जनक है । (घटु दुग्यो) जीवों के इससे वास्तविक सुख नहीं मिलता है कि तु भयकर से भयकर दुःखो का ही यह प्रदाता है । (यमओ) यह महा भयजनक है (यहुरयप्पगादो) प्रचुर कर्म रूपी रज से यह भरा हुआ है। (दारुणो) बड़ा भीपण है । (ककसो) कठोर है । (असाओ) अशात कर्म वेदनीय स्वरूप है । इस तरह का यह फलविपाक (वाससहस्सेहिं ) हजारा घों में अर्थात् पल्योपम तथा सागरोपर प्रमाणकाल में (मुच्चइ । छूटता है ।। ( न य अवेयइत्ता र माखो अस्थि त्ति) विना इसका फल भोगे जीव इससे मुक्त नहीं होता है । इस अर्थ मे प्रमाणता प्रति पादन करने के लिये सूत्रकारइसमे साक्षात्प्रमाणभृतपरमात्म के द्वारा प्रतिपादितता प्रकट करते है, वे कहते हैं- ( एवमाहसु) पभ आदि तस३५ वि " अप्पसुहो" Bण क्षार सुमरन छ “ बहुदुक्खो" જીને તેનાથી વાસ્તવિક સુખ મળતું નથી, પણ તે ભયકરમાં ભયંકર हमा ना२ छ " बहुमओ" ते महासयन "बहरयप्पगाढो" विधुत भ३५। २०४थी ते पूर्ण छ, “ दारुणो" धो लीपा छ, “ कक्सो " २ छ, “असाओ ,, अशातभवहनीय २१३५ छ मा मारना । विपा "वाससहस्सेहिं" । वर्षे सटसे पक्ष्यापन तथा सागरापम प्रमाणु आणे छूटे छे “नय अवेयइत्ता हु मोक्सो अत्यि ति" तनु ३ लाया વિના જીવ તેનાથી મુક્ત થતા નથી તે અર્થમાં પ્રમાણ ભૂતના પ્રતિપાદિત કરવાને માટે સૂવકાર તેમાં સાક્ષાત પ્રમાણભૂત પરમાત્મા દ્વારા પ્રતિપાદિતતા પ્રગટ કરે છેતેઓ કહે છે
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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