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________________ सुदर्शिनी टीका म० ३ सू० २१ अध्ययनोपसहार ३८७ एवमदत्तादानस्य चतुथै फलद्वारं निरूपितम् । साम्प्रतमध्यपनार्थमुपसहरन्नाह --' एसो सो ' इत्यादि। ___ मूलम्-एसो सो अदिण्णादाणस्त फलविवागो इहलोइयो परलोडओ अप्पसुहो बहुदुक्खो महन्भओ बहुरयप्पगाढो दारुणो ककसो असाओ वाससहस्सेहि मुच्चइ, न य अवेयइत्ता अस्थि मोक्खोत्ति, एवमाहसु णायकुलनदणो महप्पा जिणो उ वीरवरनामधेजो कहेसी अदिग्णादाणस्स फलविवाग एव त तडयपि अदिण्णादाण हर दर-मरण-कलुस -तासण-परसंति भेज्जलोभमूलं एव जाव चिरपरिचियमणुगत दुरत तिवमि ॥ सू० २१ ॥ ॥तइय अहम्मदार सम्मत्त ।। टीका--'एसो सो' एपः सन्दर्शितस्वरूपः 'अदिण्णादानस्य ' अदत्तादानस्य 'फलनिवागो, फलपिपाकः ' इहलोइयो' ऐहलौकिका मनुष्यभवापेक्षया 'परलोइओ' पारलौकिकाम्नरकाद्यपेक्षया ' अप्पमुहो' अल्पसुख-आपातमान इस प्रकार यह अदत्तादान के चौथे फल द्वार का निरूपण किया गया है, अब सूनकार इस अ पन के अर्थका उपसहार करते हुए कहते है - 'एसो सो' इत्यादि। टीकार्थ-(एसोसो) जीसका इस प्रकारसे स्वरूप प्रदर्शित कीया जा चुका है ऐसा (अदिण्णादाणस्स फलविवागो) अदत्तादानका यह फलरूप विपाक (इहलोहओ) मनुष्य भवकी अपेक्षा तथा (परलोइओ) नरकादि गतियोंकी अपेक्षासे प्रदर्शित किया गया है। इससे हम यह बात भली भाँती जान सकते है कि यह फलरूप विपाक (अप्पसुहो) આ પ્રમાણે અદત્તાદાનના ચેથા ફલદારનું નિરૂપણ કરવામાં આવ્યું, હવે सूत्रा२ मा अध्ययनना मथन! 6पस डार ७२ता ४ छ-" एसो सो"इत्यादि टी----" एसो सो"रेनु उपराउत असारे १३५ प्रगट ७२वामा मा०यु ते "अदिण्णादाणरस फलविवागो" महत्तहाननी ते ५२३५ विघा " इहलोइओ" मनुष्यलवनी अपेक्षा तथा " परलोइओ" न२४ गतियानी અપેક્ષાએ બતાવવામાં આવ્યો છે તેની મદદથી આપણે તે વાત સારી રીતે સમજી શકીએ છીએ
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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