SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 434
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५० - - - प्रश्न याकरण असिना खङ्गेन छियन्ते-खडश क्रियन्ते । तया 'निनिसिया' निविषया:= विपयात् देशानियासिताः नियन्ते । केचित् 'लिफ्णहत्यपाया य' डिमहरत पादाथ 'पमुवति' प्रमुध्यन्ते, राजकिकरेईस्तपाद विधाज्यन्त इत्ययः । केचित् जविजीवनगा य को ति ' यावाजवायनाश्च किया नीनपर्यन्त फारागारे वधन्ते । 'के पदाहरणट द्वार परद-पग उन्धाःपग्निः 'चारगालये' चारकालये कारागारे । कागनियलजुयलरुद्वा' कारार्गलानिगडयुगलरद्धाःकारार्गलया-कागगृहागठया निगडयुगलेन-लाइ शड वलाद्वयेन रुद्धा-नियन्त्रिताः भवन्ति । कथभू. १ इत्याह-'यारा' हृतसाराः = अपहतद्रव्याः । पुनः कीदृशाः 'सयणविषमुका । स्वजनवि प्रमुक्ताः = स्वकीयज्ञातिविरहिताः "त्तिजणनिरफिया" मित्रजननिराकृत शूली पर चढाने के लिये ले जाते हैं। कितनेक चोर उन राजपुरुषोंद्वारा (असिणा छिज्जति) तलवारों से काटे जाते हैं (निविसया) किननेक देश से बाहर निकाल दिये जाते हैं। और (छिण्णहत्यपायाय) कितनेक हाथ पैरों को काट कर यों ही (पमुच्चति ) छोड़ दिये जाते हैं। तथा कितनेक (जावजीव बधणाय कीरति) जीवन पयंत कारावास में ही रख दिये जाते हैं । (केह परदन्वहरणलद्धा) तथा परद्रव्यहरण करने में लुब्धक बने हुए कितनेक चोर (करग्गलनियलजुयल रुद्धा) कारागार की अर्गला के साथ लोह की जजीरों से जकड़कर (चरमालये) कारागार में ही बद कर दिये जाते है । (यसारा) इनका दन्य तमस्त रूप से अपहृत कर लिया जाता है। (सयणविप्पमुका) इसके किसी भी स्वजन से इन्हें नहीं मिलने दिया जाता है । (मित्तजणनिरकिया ) इनके नय छ मा योर ते सबसेपछी द्वारा “ असिणा छिज्जति" सवारथी ४पाय छ, “निव्विसया "32 शमाथी ही आवामा व छ, भने "छिण्ण हत्थपाया य" ॐटाने डाथ पी नाजान मु पति" छोडी भूवामा मावे छ तथा "जावज्जीवनधणाय कीरति cals वे त्या सुधा राडमा पूरी राजे छ “के परदव्यदरणरद्धा" दा ५२धननु अपड ४२पानी दासमा वाणा डेटा न्योराने "करगलनियलजुयलरुद्धा" पारागृहना माजीया साथे बढानी साथी गाधीन चरगालये" 10-- रमा २२वामा भाव छ " हयसारा" भनु सघन द्रव्य १२वाभा मावे छे “ सयणविप्पमुक्का " तेमना १५ स्वराननी भुसात मनी साथै थप हेता नथी, “मित्तजणनिरकिया " तमना भित्र पर
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy