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________________ ३८ प्रत्रयाकरणसूत्रे जानि हस्तद्वयपादद्वयरूपाणि 'धणिय ' अत्ययं वदानि पा ते तथा दबदह स्तपादाः, 'पव्ययकडगापगुन्चते ' पर्वतकटका प्रमुच्यन्ते-गिरिशिवरान्निपात्य न्तेऽत एव 'दूरपातबहुरिसमपत्थरमहा दुरपातबहुविषमप्रसारमहा: बहुवि. पमेपु= अत्यन्तपिपमेपु निम्नोनतेपु मस्तरेपु-पापाणेपु गो दूरात् पात: निपतन त सान्ते ये ते तथा गान्ति । 'अण्णेय ' अन्ये च 'गयरणमलगनिम्मदिया पीरति ' गजचरणमलननिर्मर्दिताः, तन-गनचरणेन हस्तिपादन यन्मननमर्दन तेन निर्मर्दिताः सम्मर्दितशरीरा क्रियन्ते । तया 'पायकारी' पापकारिणः फिर ये अदत्तग्रोही चोर जिस फल को पाते है-'के' इत्यादि । टीकार्थ-कह) कितनेक अदत्तग्राही मनुष्य ( कलुगाह विलयमाणा) महाकष्टोंको भोगनेके कारण करुगवचनो से विलाप करते हुए (रुस्खसासेहिं ) वृक्षोंकी शाखाओं में (उल्ल चिजति) रस्सी आदि से पापकर लटका दिये जाते हैं। तथा (अवरे) कितनेक अदत्तग्राही मनुष्य (चउरग धणियाद्वा) दोनो हाथ पैर खूब जकड़ कर बाधकर (पन्धयकडगा) पर्वत की चोटी से ( पमुच्चते) गिरा दिये जाते हैं, अतः वे (दूरपातवि समपत्थरसहा) वहा से गिर कर नीचे ऊँचे पत्थरों पर बहुत दूरतक गुडकते आने के कारण शरीर मे बहुत बुरी तरह छुल जाते है । इस सरह वे महाभयकर वेदना को सहन करते है । ( अण्णे य) कितनेक अदत्तग्राही चोर ( गयचलणमलणनिमदिया) हाथी के पैरों के तले डाल कर मर्दित (कीरति) करवाये जाते हैं । इस तरह उनके शरीर તે અદત્તાગ્રાહી ચેર જે ફળ પામે છે તેનું વધુ વર્ણન કરે છે– "के" त्यादि Atथ- "के" या माजी भासान "कलुणाइविलवमाणा" भड़ा ४टी मागवान ४२ ४० क्यनाथी विसा५ ४२ता “ रुखसालेहि " थोक्षनी सजी५२ " उल्ल बिज्जति" हो२९. माहिया माधान पी पामा भावे छ तथा " अवरे" tals महत्तमाडी म सोने “चउरगधणियबद्धा" भन्नाथ पाने भरभूत माधी “पव्यकडगा" पतनी येथी “पमुच्चते" नाये उसेमी वाभा मावे , तथा “दूरपातविसमपत्यरसहा " त्याथी या નીચા પથ્થર ગબડાવાને કારણે તેમના શરીર ખરાબ રીતે છેલાઈ જાય છે मनतशत त । मति सय ४२ वेदना सहन ४२ तथा “ अण्णेय " टस महत्ताडी योशने “गयचलणमलणतिमाहिया" लाथाना ५॥ नाय नाभान "कीर ति" हावामा माछ मे रोते हाथीन पर नये न्य
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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