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________________ सुदर्शनी टीका अ०५ सट पाल्पगीयमशनादिनिरूपणम् व ओसहभेसज्जभत्तपाण च,त पि सणिहिकय । जं पि य समणस्स मुविह्यिरस तु पडिग्गहधारिस्ल भवइ, भायण भडोवहि - उबगरण-परिग्गहो-पायवधण - पायकेसरिया पायठ्ठवण च पडलाइ तिणि वरयत्ताण गोच्छाओ तिन्नि य पच्छागा रओहरणचालपट्टक सुखणतगमादीय एय पि य सजमस्त उपवूहणट्ठयाए वायायवदसमसगसीयपरिरक्खणट्ठयाए उवगरण रागढोसरहिह्य परिवहियव्व सजएण णिच्च पडिलेहणपप्फोडणपमजणाए अहो य राओ य अप्पमत्तेणं होइ सययं निक्खिवियव्य च गिपिहयवं च भायणभडोवहि उवकरणं ॥ सू० ४ ॥ टीका-सपति कीदृशमशनादिक कल्पते ? इत्याह-'अब केरिसय' इत्यादि। 'अह' अथेति प्रमरणान्तरद्योतकः, अथ अल्पनीयाहारकथनानन्तर 'केरिसय ' कीदृश 'त' तत्-अशनादिक 'कप्पड' कल्पते परिग्रहीतुम् ' इत्याइ 'जत ' यत्तत् — एगारस पिंडवायसुद्ध' एकादशपिण्डपातशुद्धम् , एकादशभि पिण्डपात' - आचाराज द्वितीयश्रुतस्कन्वस्थितपिण्डैषणानामकप्रयमाध्ययनस्य विधिमतिपारेकादशभिरुद्देशै. तत्रोक्तविधानैरित्यथ शुद्ध तत्रोक्तदोपवर्जितमि अथ सूत्रकार साधु को फैसा अशनादि करपता है १ सो कहते हैं-'अह केरिसय ' इत्यादि । टीकाथ-(अह) पूर्वोक्त आहार अकल्पनीय है तो (केरिसय ) किम प्रकार का आहार साधु को ( कप्पइ ) कल्पता है इस पर कहते है (एगारमपिंडवायसुद्ध जत) जो अशन ग्यारह पिण्डपातों से शुद्ध हो-अर्थात् आचाराङ्ग के द्वितीय श्रुतस्कध के पिण्डैपणा नामक प्रथम अध्ययन में विधिप्रतिपादक जो ग्यारह उद्देश है उन से जो आहार वे साधुन उपासनशनाते सूत्रा२४ छ-"अह केरिसय"ऽत्या: टी.-" अह" पूर्वक्ति माडार २५४ पनीयता " केरिसय " ४॥ २। माहा२ साधुने “कप्पइ" ४८१ ते ते विधे सूत्रधार ४ छे है" एगोरसपिंडयायसुद्ध जत" २ मा २ मगिया (पातथा शुद्ध खाय એટલે કે આચાગગન દ્વિતીય કૃતનુ ધના પિંડવણ નામના પહેલા અમે થનમા વિધિ પ્રતિપાદક જે અગિયાર ઉદે છે તેમના વડે જે આહાર શુદ્ધ
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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