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प्रश्नव्याकरणसूत्र वा' यहि-उपाश्रयाद पहिर्या ' समणट्टयाए ' अमगार्थतया - श्रमणनिमित्त मित्यर्थः, 'ठविय' स्थापित होज्ज' भरे , “हिमा सारज्जसपउत्त' हिंसा. सापद्यसपयुक्तम्-हिंसया पट्झायोपमर्दीन मायद्या-सोपेण कर्मणा च सप्रयुक्त 'तपि य' तदपि च अनादिक 'परिपत्नु' परिमहीतुं 'नकप्पई' न कल्पते।मु०॥
कोदृशमशनादि कल्पते ? इत्याह--नाकरिसय ' इत्यादि । __ मूलम्-अह केरिसय पुणो त कप्पड जं त एगारसपिडवायसुद्ध किण्णणहणण-पयण-कयकारियाणुमोयण--नवकोडीहि सुपरिसुद्ध दसहि य दोसेहि विप्पमुक्क उग्गम उप्पायणेसणाहि सुद्ध ववगयचुयचवियचत्तदेह च फासुयं च ववगयसजोगमणिगालं विगयधूम छहाणनिमित्त छक्काय परिरक्खणट्र हणि हणि फासुएण भिक्खेण बहियध्वं । ज पि य समणस्स सुविहियस्त रोगायके वहुप्पगारम्मि समुपन्ने वायाहिग -- पित्तसिंभाइरित्तकुवियतहसणिवाए जाए तह उदयप्पत्ते उज्जलवल विउलकक्खड पगाढदुक्खे असुभाडय फरुसचडफलविवागमहत्भए जीवियतकरणे सव्वसरीर परितावणकरणे न कप्पइ । तारिसे वि तह अप्पणो परस्स ( उस्सवेसु ) इन्द्रोत्सवों के समय मे तथा ( अतो वा यहिं वा) उपाश्रय के भीतर अथवा उपायश्रय से घाहिर (रोज्जसमणट्टयाए ठविय) मु. नियो के निमित्त स्थापित कर रग्वा हो ऐसा वह (हिंसासावज्जसपउत्त ) षटकायोपमर्दनरूप हिंसा से एवं सदोष कर्म से सप्रयुक्त अशनादि (न कप्पइ त पिय परिघेत्त ) वह भी आहार साधुको लेना नही कल्पता है।सू३।
नागपूत यज्ञोना समय भने " उस्सवेसुन्द्रोत्सवाने समये तथा "अतो वा बहिवा " अाश्रयनी म ४२ ॥ पायनी महा२ " होज्ज समणट्ठयाए ठविय " भुनियाने माटे भी भूसो जाय वो त " हिंसासावज्जसपउत्त" ७४ाय 6पन३५ डिसाथी तथा सहोष उमथा युवत मन "न कप्पइ त पिय परिधेत "ते माडार पाय साधुन सवा ३८५तो नयी ॥ 3 ॥