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________________ ८५८ ama- D प्रमायारणसूत्र प्पादितमित्यर्थ 'पन्छाकम्म ' पचाकम, पान-दानान्तर कम-भाजनमक्षा लनादि यत्राशनादौ तत् , तथा 'पुरेसम्म ' पुराकर्म = पुरा = दानात्पूर्व कर्म हस्तलाघवादि यत्र तथा-'नितिग' मैत्यियम् = नित्यपिण्ड, दापोपणप्रमा ण वाऽवस्थितम् , ' उदगमरिखय उदकनक्षितम्-उदकादिना, आदिशळातसवित्तयिनीकायादिभिरवगुण्ठितम् , उक्तत्र " मस्सियमूदगाहणाउज जुन्न" इति । 'अइरित्त' अतिरिक्तम् द्वात्रिंशत् , काला आहारः पुरुषस्य कुक्षिपूरको भवति, खियथाप्टाकिंगति काला, नपुसकस्य चतुर्विगति काठा आहारः। ततो ऽधिक आहारोऽतिरिक्तमुन्यते । तपा-'मोहर' मौसरम्पर्पसस्तवमातापित्रादि पश्चात्संस्तवश्वशुरश्यामादिना सह माग्वर्येण बहुभापित्वेन यल्लभ्यते, नदशनादिक मौखरमुन्यते । तथा ' सयगाह ' सय ग्राहम्म्दाय के नादत्त यद्गृह्यते तत् याचक जनो को देने के प्रयोजन से बनाया गया हो, ऐसाआहार साधु को लेना नहीं क्ल्पता है । इसी प्रकार जो आहार (पच्छाकम्म) पश्चात् कर्म से युक्त हो, और (परेकम्म ) पराकर्म से युक्त हो, तथा (निति गमुदगमक्खिर ) नैत्यिक-नित्यपिंड रो, अथवा-दाता ने जिसे अपने खाने के जितना ही धनाश हो, उदक मुक्षित हो-सचित्त उदक से सचिन पृथिवीकाय आदि से अवगुठित हो (अइरित्त ) अतिरिक्त होपुरुपो की अपेक्षा से बत्तीस ग्रास से, न्नियों की अपेक्षा अट्ठाईस ग्रास से और नपुसक की अपेक्षा चोईस ग्रास से जो अधिक हो, वह आहार भी मुनियों के लिये कल्पित नहीं है। इसी तरह (मोहर ) जो आहार मौखर हो-पूर्वसस्तव मातापिता आदि के साथ तथा पश्चात्सस्तव श्वशुर श्यालक आदि के साथ अधिक घातचीत करने से प्राप्त होता हो, (सय અથવા યાચકજનોને દેવાને માટે બનાવા હોય, એવો આહાર લેવો સાધુને ४६५तो नथी से प्रभारी ने माहा२ " पच्छाकम्म, पश्चात मथी युत डाय भने "पुरेकम्म" ५२१ उमथी युतीय तथा' नितिगमुदगमक्सिय" નૈત્યિક નિત્ય પિડ હોય, અથવા દાતાએ જે પિતાને ખાવા જેટલું જ બની બે હય, ઉદક મુક્ષિત હોય-સચિન પાણીથી, સચિન પૃથ્વીકાય આદિથી भवाशुति डाय," अइरित" अतिरित डाय-५वानी अपेक्षा मास ગ્રાસથી, સ્ત્રીઓની અપેક્ષાએ અઠ્ઠાવીસ ગ્રાસથી. અને નપુસકની અપેક્ષા વીસ ગ્રાસથી જે વધારે હોય તે તે આહાર પણ મુનિઓને કુપતે નમ: से प्रभारी मोहर " मा.२ भौ५२ हाय पूर्वसस्तव माता पिता આદિની સાથે તથા પશ્ચાત્ સસ્તવ સસરા, સાળા આદિની સાથે અધિક વાત यात ४२वाथी प्राप्त थत डाय“ सयगाह " स्याड डाय-हातान
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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