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________________ जगदीपप्राप्तिको अयं चाष्टादशमुहर्तप्रमाणः सर्वोत्कृष्टो दिवमः पूर्व संवत्सरस्य चग्मो दिवसः इति प्रति. पादयितुमाह-से णिक्खममाणे सरिए' अथ निष्क्रामन् सूर्यः यस्मिन् स्थाने स्थितः सर्वी स्कृष्टं दिवसं कृतवान् तस्मात् स्थानात् निष्क्रामन्- गच्छन् सूर्य इत्यर्थः ‘णवं संवरं अयमाणे' नवम्-ननीनं पूर्वसंवत्सरापेक्षया नवं द्वितीयं संवत्सरम्-वर्षमयमान: प्राप्नुवान् भाददान इत्यर्थः पठमंसि अहोरतसि' प्रथमे अहोरात्र 'अम्मतराणं तरं मंडलं' अभ्यन्तरानन्तरं द्वितीयं मण्डलम् 'उपसकमित्ता चारं चरइ' उपसक्रम्प संप्राप्य चारं गतिं चरति-करोनीति । सम्प्रति-रात्रिदिवसयो बृद्धिहासं दर्शयितुमाह-'जयाणं' इत्यादि, 'जया णं भंते ! सुरिए' यदा-यस्मिन् काले खलु भदन्त ! सूर्य: 'अमंतराणतरंमंडलं उवसंकमित्ता चार चरई' अभ्यन्तरानन्तरं द्वितीयं मण्ड'कमुपसंक्रम्य-रांप्राप्य चारं गति चरति-करोति तयाणं के महालए दिवसे' तदा-तस्मिन् काले खलु कि महालय:-को महान् आलयो व्याप्यक्षेत्र वाला सर्वोत्कृष्ट दिन पूर्वसंवत्सर का चरम दिवस है-इस-यातको प्रकट करने के लिये सूत्रकार कहते हैं-से णिक्खममाणे सरिए णवं संवच्छरं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि अभंतराणंतर मंडलं उवर्षकमित्ता-चारं चरई' जिस स्थान पर स्थित होकर सूर्य ने सर्वोत्कृष्ट दिन किया है उस स्थान से निकलता हुआ वह सूर्य-नवीन-पूर्वसंवत्सर की अपेक्षा-दितीय संवत्सर-वर्ष को प्राप्त होकर प्रथम अभ्यन्तर अहोरात्र में अभ्यन्तर मण्डल के अनन्तर द्वितीय मंडल पर आकर के गति करता है रात्रि दिवस का वृद्धि हास कथन. इसमें गौतमलामी ने प्रभु से ऐसा प्रश्न किया है-'जया णं भंते ! सूरिए' . हे भदन्त ! जिस काल में सूर्य 'अभंतराणंतरं मंडलं उवसंकर्मित्ता चारं चरई' . अभ्यन्तरमंडल के अनन्तर द्वितीय मण्डल पर पहुंचकर गति किया करता है. 'तयाणं के महालए दिवसे, के महालया राई भवई' तब उस समय-उस सूर्य છે. આમ જાણવું જોઈએ. આ અષ્ટાદશ મુહર્ત પ્રમાણુવાળે સર્વોત્કૃષ્ટ દિવસ પૂર્વ સંવત્સરને ચરમ દિવસ છે. આ વાતને પ્રકટ કરવા માટે સૂત્રકાર કહે છે ‘से णिक्खममाणे सूरिए णवं संवच्छरं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि अत्भतराणंतर मंडलं उबसंकमित्ता चार चरई २ स्थान स्थित ४. सूर्य सलिटस मनाये। છે, તે સ્થાન પરથી ઉદિત થયેલે તે સૂર્ય નવીન-પૂર્વસંવત્સરની અપેક્ષાએ દ્વિતીય સંવત્સર વર્ષને પ્રાપ્ત થઈને પ્રથમ અહેરાત્રમાં અત્યંતર મંડળ પછી દ્વિતીય મંડળ પર આવીને ગતિ કરે છે. રાત્રિ-દિવસ–વૃદ્ધિ-હાસ કથન भाभा गौतभस्वामी प्रभुन मा तना प्रश्न छ-'जया णं भंते ! सूरिए मत! २imi सू 'अभंतराणंतर मंडलं उत्रसंकमित्ता चार चरइ' मस्त रभ31 पछी वितीयम ५२ पडेचार गति ४३ छ-'तयाणं के महालए दिवसे, के महालया राई
SR No.009347
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages569
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size46 MB
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