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________________ जम्बूद्वीपप्राप्ति द्वितीये षण्मासे अयमानः द्वितीयं पण्मासं गच्छन् 'पढमंसि अहोरत्तसि' प्रथमे अहोरात्रे उत्तरायणस्येतिशेषः 'बाहिराणंतरं मंडल उपसंक्रमिला चारं चरइ' वास्यानन्तरं द्वितीयं मण्डल. मुपसंक्रम्य चारं गतिं चरति करोति अधात्र गत्यादि ज्ञानार्थ प्रश्नपनाइ-जयाण मितादि 'जयाणं भी सूरिए' यदा खलु यस्मिन्काले भदन्त सुर्यः 'बाहिराणंतरं मंडलं उवसंक-' मित्ता वाह्यानन्तरं सर्ववाह्यमंडलापेक्षया द्वितीयं मण्डलमुपसंक्रम्य संप्राप्य 'चारं' परहे चारं गतिं चरति करोति 'तयाणं एगमेगेणं मुहुनेणं वयं खेत्तं गच्छइ' तदा तस्मिन् द्वितीयमण्डलसंक्रमणकाले खलु एकैकेन मुहूर्त्तन कियत् कियत्प्रमाणक क्षेत्रं गच्छतीति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमे' त्यादि 'गोयमा' हे गौतम ! 'पंच पंचजोयणसहस्साई' पंव पंच योजनसहस्राणि 'तिण्ण य चउहत्तरे जोयणसए' त्रीणि च चनुरुत्तराणि योजनशतानि चतुरपिकानि त्रीणि योजनशतानीत्यर्थः 'सत्तावणं च सहिमाए जोयणस्स' सप्तपश्चाशन पछि.' भागान् योजनस्य 'एगगेगेणं मुहुत्तेणं गच्छइ' एकैन मुहतेन गच्छतीति ५३०४ तथा का पर्यवसान है । 'से सूरिए' छम्मासस्प्त सर्ववाद्य मडल गति के अनन्तर सूर्य 'दोच्चे छम्मासे अयमाणे दूसरे छह मास में गमन करता हवा 'पढमंसि अहा. रत्तसि' उत्तरायण के प्रथमअहोरात्र में 'चाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्सा चार चरइ' बाह्यानन्तर दुसरे मंडल में प्राप्त होकर गति करता है। अब गत्यादि के ज्ञान के लिए प्रश्न करते हुए करते हैं. 'जयाणं भंते ! सूरिए' हे भदन्त जिस समय सूर्य 'वाहिराणंतरं मंडलं उव: संकमित्ता' सर्व बाह्यमंडल की अपेक्षाले दूसरे मंडल को प्राप्त करके 'चार चरइ' गलि करता है 'तयाणं एगमेगेणं मुहत्तेग केवइयं खेत्तं गच्छई' तप दूसर मंडल के संक्रमण काल में एक एक मुहर्त में कितने प्रमाण वाले क्षेत्र में जाता है? इस प्रश्न के उत्तर में भगवान् कहते हैं-'गोयमा!' हे गौतम ! 'पच पच जोयण सहस्साई पांच हजार योजन 'तिनिय चउरुत्तरे जोयणसए' तानसा चार योजन 'सत्तावणं च सद्विभाए जोयणस्स' एक योजन का साठिया सतावनवां भाग 'एगमेगेणं मुहत्तेणं गच्छई' एक मुहूर्त में जाता है ५३०४६० मत३५ छ 'से सूरिए' समा गतिनी पछी' सूर्य 'दोच्चे छम्मासे अयमाणे' lon छ भास गमन ४२त 'पढमंसि अहोरत्तंसि' उत्तरायणना पडसा मात्रमा बाहिराणतर मंडलं उवसंकमित्ता चार चरइ' माहानन्तर भीत भभ प्राप्त न गात २. ' व न्यादिना ज्ञान भाट प्रश्न ४२di -'जयाणं भंते ! सूरिए' 3 सगवन् ! न्यारे सूर्य 'बाहिरागंतर मंडलं उघसंकमित्ता' सब मा भजनी अपेक्षाथी भाग भ. जन प्राप्त शत 'चार चरइ' गतिरे छ. 'तयाण एगोणं महत्तणं केवइयं खेत्तं गच्छ બીજા મ ડળના સંક્રમણ કાળમાં એક એક મુહૂર્તમાં કેટલા પ્રમાણવાળા ક્ષેત્રમાં જાય છે.' मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु श्री ४३ है-'गोयमा ! गौतम ! 'पंच पंच जोयणसहस्साई' पाय
SR No.009347
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages569
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size46 MB
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