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________________ विकाका टीका-वक्षस्कारः सू.सप्तम ५ मुहूर्तगतिनिरूपणम् अथ नवसंवत्सरप्रारंभप्रकारप्रज्ञापनाय सूत्रमाह-'से णिक्खममाणे इत्यादि 'से णिक्खमाणे सूरिए' अथ निष्क्रामन् सूर्यः अथाभ्यन्त मंडलात् निष्क्रामन् प्रसर्पन जम्बूद्वीपस्यान्तः प्रवेशेऽशीत्युत्तरलक्षयोजनप्रमाणके क्षेत्र चरमाकाशप्रदेशस्पर्शनानन्तरम् द्वितीयसमये द्वितीयमण्डलाभिमुखं प्रसर्पन इत्यर्थः, सूर्यः 'नवं संवच्छरं अयमाणे' नवं नवीनम् आगामिकालभाविनं संवत्सरमहोरात्रकूटस्वरूपं वर्षम् अयमानोऽयमानः आददान आददान इत्यर्थः 'पढमंसि अहोरसि' प्रथमे सर्वत आद्ये अहोरात्रे 'सयभंतराणंतरं मंडलं' सर्वाभ्यन्तरात् अनन्तरं द्वितीयं मंडलम् 'उवसंकमित्ता चारं चरई' उपसंक्रम्य सर्वाभ्यन्तरमण्डलात अनन्तरं द्वितीयं मण्डलमुपसंक्रम्य संप्राप्य चारं गतिं चरति करोति अयमहोरात्रो दक्षिणायन संवत्सरस्यायः प्रथमोऽहोरात्रः संवत्सरस्य दक्षिणायनादिकत्वादिति । ____ अथात्र कीदृशीगतिः सूर्यस्य भवतीति दर्शनार्थ प्रश्नयनाह-'जयाण'- मित्यादि 'जया चरम दिवस होता है क्योंकि संवत्सरका पर्यवसान उत्तरायण में होता है 'से णिक्खममाणे सूरिए' अब नवीन संवत्सर के प्रारम्भ प्रकार की प्रज्ञापना निमित्त सूत्रकार कहते हैं कि आभ्यन्तर मण्डल से निकलता हुआ सूर्य-अर्थात् जम्बूद्वीप के भीतर प्रवेश करने पर १ लाख ८० योजन प्रमाणक्षेत्र में चरम आकाश प्रदेशों की स्पर्शना के अनन्तर द्वितीय समयमें द्वितीय म डल की और पढता हुआ सूर्य-नवं संवच्छरं अयमाणे २' आगामी काल भावी अहोरात्र कूट स्वरूप संवत्सरका प्रारम्भ करता 'पढमंसि अहोरत्तंसि सव्वन्भंतराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता' सर्वप्रथम अहोरात में सर्वाभ्यन्तर मण्डल से अनन्तर द्वितीय मंडल पर पहुंच कर 'चारं चरई' अपनी गति करता है यह अहोरात्र दक्षिणायन संवत्सर का अहोरात्र है क्योंकि संवत्सर दक्षिणायनादि स्वरूप ही तो होता है। सूर्यको कैसी गति होती है इसका कथन દિવસ છે. કારણ સંવત્સરની સમાપિત ઉત્તરાયણમાં થાય છે. वे ना सवत्सरना प्रारमनी ४२ मता। भाटे सूत्रा२ ४ है-'से णिक्खम. माणे सूरिए' व निभाय ४२ सूर्य मयत२ भउमाथी नाणी दीपनी म २ પ્રવેશ કરવામાં એક લાખ એંસી જન પ્રમાણવાળા ક્ષેત્રમાં અન્તિમ આકાશપ્રદેશને १५ ४२वाथी (मी समयमा भी मजामिभुम मस1) सूर्य 'नवं संवच्छर अयમળે નવા આગામી કાળ સંબંધી સંવત્સર અર્થાત્ અહેરાત્રના કૂટવરૂપને એટલે કે पन ४२तो सूर्य 'पढमंसि अहोरत्तसि' सौथी पडसा भराभा 'सव्व तराणतर मंडल' सत्य तर माथी मीत भजन 'उवस'कमित्ता चार चरइ' प्राप्त गति કરે છે. આ અહોરાત્ર દક્ષિણાયન સંવત્સરને પહેલે દિવસ છે. કારણ કે-સંવત્સર દક્ષિણાયનાદિપણાવાળે છે. અહીંયા સૂર્યની ગતી કેવી હોય છે? એ બતાવવા માટે પ્રશ્ન
SR No.009347
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages569
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size46 MB
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