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________________ जम्बूद्वीपप्रबप्तिसूत्रं . उपदर्शयतीति-अत्र वर्तमानकालनिर्देशः त्रिकालभाविपु तीर्थङ्करेषु जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति उपाङ्ग विपयकार्यप्रणेतृत्वविप्रदर्शनायेति / अत्र च ग्रन्थसमाप्तौ श्रीमद्वर्द्धमानस्वामिनो नामप्रदर्शनं चरममङ्गलमिति // सू० 34 // इतिश्री विश्वविख्यात-जगवल्लभ-प्रसिद्धवाचकपञ्चदशभापाकलित-ललितकलापालापकप्रविशुद्धगधपद्यानैकग्रन्थनिर्मापक-वादिमानमर्दक-श्री-शाहू छत्रपतिकोल्हापुरराजप्रदत्त-'जैनशास्त्राचार्य-पदविभूषित-कोल्हापुरराजगुरु-बालब्रह्मचारी जैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर-पूज्यश्री-घासीलाल-व्रतिविरचितायां श्री जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तौ भगवतीसूत्रस्योपाङ्गरूपायां प्रकाशिकाख्यायां व्याख्यायां सप्तमवक्षस्कारः समासः // 7 // समाप्तोऽयं ग्रन्थः जम्बुद्धीप प्रज्ञप्ति नामक अध्ययन को कहता हूं सो उसे मैंने अपनी बुद्धि से उत्पेक्षित नहीं किया है 'उपदर्शयति' यदां पर जो वर्तमान काल का निर्देश किया गया है सो त्रिकालभावी तीर्थंकरों में इस जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति नामक उपाङ्ग विष यक अर्थ का प्रणेतृत्व है इस बात को प्रदर्शन करने के लिये किया गया है यहां इस सूत्र की समाप्ति में श्री महर्द्धमानस्वामी का नामप्रदर्शन चरम मंगलरूप है श्री जैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर पूज्यश्री घासीलाल व्रतिविरचित जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र की प्रकाशिका व्याख्या में // सप्तमवक्षस्कार समाप्त // 7 // || जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति-उपाङ्ग समाप्त // જમ્બુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ નામક અધ્યયન દ્વારા કહું છું તે મે મારી બુદ્ધિથી ઉક્ષિત કરેલ नया 'उपदर्शयति' सही या रे वर्तमानपना निश ४२मा भाव्या छ त - ભાવી તીર્થકરમાં આ જમ્બુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ નામક ઉપાંગ વિષયક અર્થનું પ્રણેતૃત્વ છે એ पात वा // 2 ४ामा माव्यु छे. मही प्रस्तुत सूत्रनी समतिमा 'श्रीमद्' વર્ધમાનસ્વામીનું નામ પ્રદર્શન ચરમ-મંગળરૂપ છે. 34 શ્રી જૈનાચાર્ય જૈનધર્મદિવાકર પૂજ્ય શ્રી ઘાસીલાલ વ્રતિ વિરચિતજમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્રની પ્રકાશિકા વ્યાખ્યાને સાતમે વક્ષસ્કાર સમાપ્ત છા જમ્બુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ-ઉપાંગ સમાપ્ત
SR No.009347
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages569
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size46 MB
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