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________________ जम्बूद्वीपप्रयतिसूत्रे ४७२ विमानं नीला प्रचलन्ति इति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा !' हे गौतम !, 'सोलसदेव साहसीओ परिवति' पोडशदेवसहस्राणि परिवहन्तीति, एकैकस्यां दिशि चतुः चतुः सहस्राणां देवानां सद्भावात् अयं भावः- अत्र खल चन्द्रादि देवानां विमाशनि तथाजगत्स्वभावादेव निरालम्बनानि ब्रहमानानि अवतिष्ठन्ति केवलं ये आभियोगिका देवास्ते आभियोगिकनाम कर्मोदयबळात् उत्तमजातीयानां तुल्यजातीयानां दीनजातीयानां या देवानां स्वकीय महिमातिशय दर्शनार्थे स्वकीयमात्मानं बहुमन्यमानाः प्रमोदमदभृतः अनवरत चलन शीलेषु विमानेष्वधः स्थित्वा केचन सिंहरूपाणि केचन गजरूपाणि केचन वृषभरूपाणि नौवें द्वार की वक्तव्यता 'चंद विमाणे णं भंते । कइ देवसाहस्सीओ परिवहंति' टीकार्थ- श्रीगौतमस्वामी ने इस सूत्र द्वारा प्रभुश्री से ऐसा पूछा है- 'चंद्रविमणे णं भंते!' हे भदन्त ! जो चंद्र विमान है उसे 'कइ देव साहस्सीओ परिवर्हति' कितने हजार देव- कितने हजार आभियोगिक जाति के देव-लेकर के चलते हैं ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं- 'गोयमा । सोलसदेव साहस्सीओ परिवहति' हे गौतम ! चन्द्र के विमान को १६ सोलह हजार देव लेकर के चलते हैं। एक एक दिशा में ऐसे चार २ हजार देव रहते हैं। यद्यपि चन्द्रादिक देवों के विमान स्वभावतः ही निरालम्बभूत हैं और इसी प्रकार से वे बिना सहारे के चलते हैं परन्तु जो आभियोगिक जाति के देव हैं वे आभियोगिक नाम कर्म के उदय के बलसे उत्तम जाति वाले देवों के, तुल्य जातीयवाले देवों के, अथवा हीन जातिवाले देवों के निरन्तर प्रचलनशील विमानों में अपनी महिमा का अतिशय दिखाने के निमित्त अपने आपको उनके विमानों के नीचे रहने में श्रेष्ठ मानते हुए નવમાદ્વારની વ્યક્તવ્યતા 'चंद विमाणे णं भंते ! कइ देवसाहस्सीओ परिवहति' त्यहि टीडार्थ-गौतमस्वाभीमे प्रस्तुत सूत्र द्वारा प्रभुने या प्रमाणे पूछयु - 'चंदविमाणे णं भंते! हे ! अन्द्रविभान छे तेने- 'कइ देव साहस्सीओ परिवहंति' डेटा उन्नर ટ્રુવ-કેટલા હજાર આભિચાગિક જાતિના દેવ–લઈને ચાલે છે? આના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે 'गोयमा ! सोलसदेवसाहस्सीओ परिवहंति' के गीतभ ! यन्द्रना विभानने १६ सोज હજાર દેવ લઈને ચાલે છે. એક-એક દિશામાં આવા ચાર-ચાર હજાર ધ્રુવ રહે છે. જોકે ચન્દ્રાદિક દેવાના વિમાન સ્વભાવતઃ જ નિરાલમ્મભૂત છે અને આ પ્રકારથી તે વગર સહારે ચાલે છે. પરન્તુ જે આભિયાગિક જાતિના દેવ છે તે આભિચેોગિક નામક્રમના ઉદયના મળથી ઉત્તમજાતિવાળા દેવાના તુલ્યજાતીયવાળા દેવાના અથવા હીનજાતિવાળા ટ્રુમેના નિરન્તર પ્રચલનશીલ વિમાનેામાં પોતાના મહિમાનું પ્રાણલ્ય દર્શાવવાના નિમિત્તે પુતે પાતાની જાતને તેમના વિમાનાની નીચે રહેવામાં જ શ્રેષ્ઠ માનતા થાં નન્હ
SR No.009347
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages569
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size46 MB
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