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________________ ४१८ जम्बूदीपप्रतिरले रात्रान् नयति-परिसमापयति, 'पुयाभनया अभटोरते णेई' पूर्वभाद्रपदा नक्षत्र भाद्रपद मासस्याष्टौ अहोरात्रान् नयति-परिसमापयति, 'उनरभवया पगं' उत्तरभद्रपदानक्षत्रमेक महोरात्रं नयति, तदेवं संकलनया चत्वारि नक्षत्राणि गादादमासं परिसमापयनीति । 'तसि घणं मासंसि' तस्मिंश्च खलु मासे 'अटुंगुलपोरिसीए छायाए सरिए अणुपरियहइ' अष्टा गुलपौरुज्या अष्टाङ्गुलाधिकपौरुप्या छायया सूर्योऽनुपर्यट-अनुपरावर्तते, एतदेव दर्शयति 'तस्स' इत्यादि, 'तस्स मासस्स चरिमे दिवसे' तस्य मासस्य तस्य भाद्रपदमासस्य चरमे पर्यवसानदिवसे 'दोपया अट्ठय अंगुला पोरिमी भवइ' हे पदे अष्टौ चागुलानि पौरुपी भवति । अथ तृतीयमासं पृच्छति-'वासाणं भने' इत्यादि, 'वासाणं भंते ! वर्षाणां भदन्त ! 'तइयं मासं इ णक्खत्ता गति' तृतीयमाश्विनलक्षणमासं फति-कियत्संख्यकानि जो नक्षत्र है यह १४ अहोरातो का परिसमापक होता है 'सयभिसया सत्त अहोरत्ते णेई' शतभिपक नक्षत्र सात अहोरातों का परिसमापक होता है 'पुन्वभवया अह अहोरत्ते णे' पूर्वभाद्रपदा आठ अहोरातों का परिसमापक समाप्त करने वाला होता है 'उत्तर भदवया राग' और उत्तरभाद्रपदा एक अहो. रात का परिसमापक होता है। इस प्रकार से ये चार नक्षत्र भाद्रपद मास की परिसमाप्ति करने वाले होते हैं। 'तंसि च णं माससि अडगुल पोरिसीए छायाए सरिए अणुपरियई' इस महीने में आठ अंगुल अधिक पौरुषी रूप छाया से युक्त हुआ सूर्य परिभ्रमण करता है। यही वात सूत्रकार ने इन सूत्रों द्वारा प्रकट की है 'तस्स मासस्स चरिमे दिवसे दो पया अद्वय अंगुला पोरिसी भवइ' उस मास के अन्तिम दिन में दो पदों वाली और आठ अंगुलो वाली पौरुषी होती है। ___ 'वासाणं भंते! तइयं मासं कह णक्खत्ता ऐति' हे भदन्त ! वर्षाकाल के तृतीयमास को-आश्विनमास को-कितने नक्षत्र समाप्त करते हैं ? इसके उत्तर में चउद्दस अहोरत्ते णेई' २ घनिष्ठा नक्षत्र छ । १४ मडात्रिनु परिसमाप४ डाय छ 'सयभिसया सत्त अहोरत्त णेइ' शतमिपद नक्षत्र सात मडात्रिनु परिसभा५४ समाप्त ४२ना डाय . 'पुव्वभद्दवया अट्ठ अहोरत्ते णेई' पूर्णाद्र ५६2418 अात्रिमाना परि. सभाप-सभापत ४२नाई डाय छे. 'उत्तरभदवया एग' भने उत्तराद्रपा ये४ मी. રાત્રિનું પરિસમાપક હોય છે. આ પ્રકારે આ ચાર નક્ષત્ર ભાદ્રપદ માસની પરિસમાનિત ४२वावामा छे. 'तं सि च णं मासंसि अटुंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टई' मा મહિનામાં આઠ આગળ અધિક પૌરૂષી રૂપ છાયાથી યુક્ત થયેલે સૂર્ય પરિભ્રમણ કરે मा पात सूत्रहारे सूत्र द्वारा घट ४० -'तस्स मासस्स चरिमे दिवसे दो पया अटू य अंगुला पोरिसी भवई' त भडिमाना छ। हिवसे मे पहापाजी तमा माई આગળવાળી પૌરૂષી હોય છે. 'वासाणं भंते ! तइयं मासं कइ णखत्ता ऐति' महन्त ! वर्षाना तृतीय भासनेसचिन भासन-38 नक्षत्र समास ४रे छ ? भान पाममा प्रभु ४३ छ-'गोयमा,!
SR No.009347
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages569
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size46 MB
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