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________________ प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू. २१ नक्षत्राधिकारनिरूपणम् ३३३ खल्लु सदा-सर्वकालं चन्द्रस्य दाक्षिणो वि उत्तरओ वि पादं पि जोग जोएंति तेणे सत्त' दक्षिणतोऽपि दक्षिणरयामपि दिशि, उत्तरेणापि उत्तरस्यामपि दिशि, प्रमर्दमपि नक्षत्रविमानानि विभिय.मध्ये गमललक्षणं योग संनन्, गोजयन्ति कुर्वन्ति तानि खलु नक्षत्राणि सम-राप्तसंख्यकानि भवन्ति । तानेव सप्तभेदान् दर्शयितुमाह-'तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा' तद्यथा'करिया रोहिणी जुणवसु मयाचिता निसाक्ष अणु राहा' कृत्तिकारोहिणी पुनर्वसु र्मयाचित्रा विशाखा अनुराश चेति, एतेषां सप्तानामपि नक्षत्राणां निधाऽपि योगो भवति, चन्द्रेण सहेत्यर्थः । यदपि स्थानान सूत्रेऽष्टमाध्ययने समवाययोगात्रे च कथितम् । 'अट्ठणक्खचा चंदेण सद्धि पमई जोगं जोएंति कत्तिया रोहिणी पुणब्बसु मा चित्ता विसाहा अणुराहा जेट्टा' इति (अष्टी नक्षत्राणि चन्द्रेण साद्ध प्रमद योग योजयन्ति, कृतिका रोहिणी पुनर्वस मंघा चित्रा विशाखा अनुराधा ज्येष्ठा इतिच्छाया) इति कथितमित्येकस्याधिक्यं प्रदर्शितम, पओ चि उत्तरोधि पमदं वि जोगं जोएंति ते णं सत्त' उन २८ नक्षत्रों में से जो नक्षत्र सदा चन्द्र की दक्षिण दिशा में और उत्तर दिशा में इन दोनों दिशाओं में व्यवस्थित होते हुए प्रमई योग-नक्षत्र विमानों को भेद करकेबीन में गमन रूप योग को-सम्बन्ध को करते हैं वे नक्षत्र सात हैं ! 'तं जहा उनके नाम इस प्रकार से हैं-(कन्तिया रोहिणी पुणवस्तु मघा, चित्ता विसाहा, अणुराहा' कृत्तिका रोहिणी, पुनर्वसु, मघा, चित्रा, विशाखा, और अनुराधा न नक्षत्रों का चन्द्र के साथ तीनों प्रकार का भी योग होता है। यद्यपि स्थाना सूम में अष्टमअध्ययन में समवाय योग सूत्र मे 'अट्ठणक्खत्ता चंदेश सहि पस. इंजोगं जोएंति कत्तिया, रोहिणी, पुणाच्वसु, महा चिता, विसाहा अणुराहा जेहा' ऐसा पाठ है- इसका भाव ऐसा है कि कृत्तिका, रोहिणी, पुनर्वसु, मघा, चित्रा विशाखा, अनुराधा और ज्येष्ठा ये आठ नक्षत्र चन्द्र के साथ प्रमर्द योग करते हैं। सो इस पाठ में एक नक्षत्र की अधिकता प्रकट की गह है। अतः अभय 'तत्थणं जे ते- णवत्ता जेणं खलु सया चंदरस दाहिणओ वि उत्तरओ वि पमई विजोग जोएंति तेणं सत्त' ते २८ नपामाथी २ नक्षत्र सही यन्द्रनी क्षिाहिशामा मन त२. દિશામાં એ બે દિશાઓમાં વ્યવસ્થિત થતાં થકાં પ્રમઈ ગ-નક્ષત્ર વિમાનોને ભેદીને વચમાં ગમનરૂપ ચેગને-સમ્બન્ધને કરે છે એવા સાત નક્ષત્ર છે તે જ તેમના નામ આ प्रभारी छ-'कत्तिया रोहिणी पुणव्वसु, मघा, चित्ता, विसाहा, अणुराहा' कृति लिया, પુર્વસુ, મઘા, ચિત્રા, વિશાખા અને અનુરાધા આ નક્ષત્રને ચન્દ્રની સાથે ત્રણ પ્રકારના પણ રોગ થાય છે જે કે સ્થાનાંગ સૂત્રમાં અઠમાં અધ્યયનમાં સમવાય ગ સવમાં 'अट्रणक्खता चंदेण सद्धि पमई जोगं जोएंति, कतिया रोहिणी, पुणव्वसु महाचित्ता निसार अणुराहा जेट्टा' मे ५४ ठे-माने लव मे छे ४-ता, डिणी, पुन, मधा. ચિત્રા, વિશાખા, અનુરાધા અને જ્યેષ્ઠા આ આડ નક્ષત્રે ચન્દ્રની સાથે પ્રેમ કરે
SR No.009347
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages569
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size46 MB
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