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________________ . .. प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू. २० संवत्सरादीनां आदित्वनिरूपणम् ३६१ ग्रेवीमुत्तरों पक्खस एकातिशत्युत्तरं पक्षाशता, अतिशास पक्षद्वय भवात्। श्रद्वारसतीसा अहोरत्तस्या, अष्टादश, विशद होरात्रशतानि त्रिंशदधिकानि अष्टादशोहोरात्रशतानि अष्ट्रादशशतानि, त्रिंशदधिकानि अहोरात्राणाम्. प्रत्ययनं व्यशीत्यधिकशतमहोरात्राः तेच दशसंख्यया गुणिताः विशदधिकानि अष्टादशशतामि भवन्तीति । 'चउप्पण मुहृत्तसहस्सा चतु पश्चाशनमुहूर्त्तसहस्राणि पिवयराया पन्नता': 'नयंचशतानि प्रत्यहोरात्रं त्रिशन्मुहत्ती भवन्तीति युगाहोरात्राणाम् १८०३ ० . सॉल्यवान विंशत्संख्यया गुणने यथोक्तसंख्यासंभवादिति कथितं चन्द्रसूर्यादीनां गतिस्वरूपमिति ॥ १२ ॥ .. :'. Fi1517 ' 11-16 19 नक्षत्राधिकारमा .. एतावता प्रकरणेन चन्द्रसूर्यग्रहनक्षत्रतारारूपाणां गत्यादि, स्वरूप, कथित, तदनन्तर योगादीन शविषयान कथयितुं द्वारगाथा सूत्रमाह- जोगो देवय' इत्यादि । मूलम्जोगो? देव यर तारग.३. गोत्तर संठाणा५. चंद्रविजोगा।. Hi: कुलं पुरिणामअवमसाबाट सपिशवाय य९ णेला.या१०॥ सठि मास होते है अथवा हर"एकतु २ मास की होती है और चर्चात्मक युग में ३४ अतुए कही गई हैं तो फिर-३०-६० मान होते है यह स्पष्ट हो जाता है। 'एगे वीउत्तरे पक्खलए' एक युग में १२४ पक्षहीत हैं एक मलि में पक्ष जय होते हाती एक वर्ष में २४ पक्ष और पांचवर्ष में २४४५= पक्ष हिसाब से आजति है (अहरलतीसा अहोरसया एक युग में १४३"अहोरात्र होत हक्योंकि हर एक 'अयन' में १८३ दिन-रात होता है १८३ में १० की संख्यासे गुणा करने परा:१८३० अहोरात आ जाते हैं। 'चउप्पाण्णं मुहत्तसहस्सा वधसया पन्नता', ९८.३० लाहोरात के एका अहोरात के मुहूर्त होने कोहिसाब से ५४०० उहती होता है। इस तरह चन्द्र सूर्य आदि कों की गतिका स्वरूप कहा॥२०di| F r tछ ५५ ६२४ मे भासती डोय छे मन. ५ (पाय) म युगमा"."HTER स्वामी भा'छ त पछी १४४२२१० भसयाय छे' 'वात स्पष्ट थे . 'एगेवीसुत्तरे पक्खसए' म युगमा १३० आय छ। सभासभा क्षा તે એક વર્ષમાં ૨૪ પક્ષ અને પાંચ વર્ષમાં ૨૪૮૫=૧૨૦ પક્ષ હિસાબ મુજબ અ,વી Mय: छ. 'अद्वारस तीसा अहोरत्तसग्ना' मे यु[Hi 1639. मोरात डोय छे. ४१२ २४ अयानमा १८3 वसं-रात डास-थे. १८३. २.१०ी. पाम, गावे .ते। १८ॐ.. महोय. तय छे. 'चउम्पएणंगुहुत्तसहस्सा वयसया - पन्नत्ता',१८३१. महोतना ही मुहान ३० -मुन वान-सम५४६००- मुडूत थाय छे. २॥ शत यन्द्र-सूर्य मानी तिनु: १३.५० ४घु..४२६! . . . : ... ज०४१
SR No.009347
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages569
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size46 MB
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